Friday, August 21, 2020

हौसला रखिये...

लकीरों को गाढ़ा जख्मों को हरा रखिये
चुनाव आगे भी हैं फ़ासलों को जिंदा रखिये

मर्ज़ की चर्चा मे कोसा जाता है एक मरीज हर बार
खुद को इस गुफ़्तगू से जरा दूर रखिये

ये नफ़रतें किसी की हुई हैं जो तुम्हारी होंगी
ऐसे हर जज़्बात से तौबा रखिये

तुम्हें अकेला किया जायेगा अपनों के बीच
सब्र से दोस्ती और हौसला रखिये 

Tuesday, October 22, 2019

Mathew


सौम्यता और मुस्कुराहट के धनी
मैथयू अब्राहम अब EMC के साथ नहीं रहे
इनका शुरुआती समय इंजीनियरिंग मे बीता
इंजीनियरिंग मे पले-बढ़े और खिले मैथयू
सर्विसेस मे तपाये और घिसाये गये
जहाँ लोग सुकून की तलाश मे उलझे
मैथयू नई चुनोतियों को खोजते पाए गए
जहाँ उनके कई साथी एक-दो पेग मे लुड़के
मैथयू अक्सर on the rock पाए गए
हम जानते हैं मैथयू
तुम हर मुश्किल डगर को पार कर जाओगे
EMC से तो कह दिया अलविदा दोस्तों से न कह पाओगे

Below is summary in English. It is not the translation

Known for his modesty and soothing smile Mathew Abraham is no more with EMC
While his engineering days are most satisfying together with learning and personnel growth, he got bored in services
When people got stuck in comfort zones mathew always looked for new opportunities
When most of his colleagues are done and dusted in 1-2 pegs mathew found enjoying ON THE ROCKS
We know mathew you will clear all hurdles and scale new heights
You told goodbye to EMC but will never able to say the same to your FRIENDS JJ

Thursday, October 25, 2018

नेतृत्व...

समझ नहीं आ रहा कहाँ से शुरु करुँ
मानो जैसे कल ही की तो बात है
नई सोच के साथ उत्साहित मुस्कुराता हुआ नया चेहरा
आया और जल्द ही सभी के दिलों दिमाग में छा गया
नये पुरस्कारों का सृजन, compliance , quality , content
लगभग हर जगह हमने नई ऊंचाइयों को छुआ
तनाव को अपने तक सीमित रखने की आपकी अद्भुत क्षमता ने
टीम को निर्भय होकर निरन्तर आगे बढ़ने का मौका दिया
आपके नेतृत्व में टीम ने कई कीर्तिमान छुये
बगैर लागलपेट के कहुँ तो हम सही रूप में diversify हुए
आपके जाने के निर्णय से हम अभी उभर भी नहीं पाये थे 
और विदा का समय आ गया
अब बस और क्या कहुँ अंत में अपनी ही एक कविता की 
चार लाइने याद आ रहीं हैं,,,,,,

आदमी कुछ भी नहीं
उसका पता है वह घड़ी

जिसमें है बीता वक्त उसका
हमे तो बस यह चाहिये
अविरत चली इस श्रंखला की
हम बने सुंदर कड़ी

पंछी नहीं टिकता वहाँ

उड़ना जहाँ वह सीखता है
पर जाता नहीं है वह अकेला
साथ उसके आसमाँ है
अब तो बस यह देखना है
कितना वो इसमें जोड़ता है
अगली कड़ी का आसमाँ

सुंदर वो कितना छोड़ता है

Friday, September 07, 2018

बालाजी...

अरविन्द और जोस के साथ चलती CPSD को दौड़ा गये बालाजी
CPSD तो पास हो गई पर दूर हो गये बालाजी
मीटिंगों में नोंकझोंक में मुस्कुराते बालाजी
चाय पाईटं की चर्चाओं में धुआँ उड़ाते बालाजी
नये मित्रों के नये साथ में
उच्च शिखर की चकाचौंध में
भूल ना जाना हमको तुम
दुआ हमारी सदा रहेगी खुश रहो तुम बालाजी


Below is summary in English. It is not the translation

Balaji together with Arvind and Jose took CPSD to new heights
Now when CPSD got lot of success Balaji is going away from us 
We will miss Balaji’s signature smile
And his e-cigarette clouds during chai point chit-chat
With new friends and greater success in coming days
Balaji do not forget your old friends
We wish you all the success and happiness

Tuesday, May 22, 2018

आगाह...

मैं बुद्ध सी शांत समाधि में हूँ 
देख तू मुझे न भड़का 
मैं कर रहा हूँ तुझे आगाह 
क्योंकि गर जंग हुई 
तो कुछ तीर तेरे होंगे 
कुछ तीर मेरे होंगे 
कुछ वीर तेरे होंगे 
कुछ वीर मेरे होंगे 
और वीरगति को प्राप्त हो जायेंगे लाखों बेगुनाह 

Wednesday, January 31, 2018

नागेश...

नागेश जैसे हीरे को तो एक दिन खोना ही था
जिसके नाम में ही प्रभु हों उसे तो एक दिन अमर होना ही था
-------
संग मधु के जिसने थी टूल्स टीम सजाई 
उसे हमारी ह्रदय से है लाखों लाख बधाई

Thursday, January 25, 2018

विनय...

हमारी ह्रदय से विनय है विनय की तुम मत जाओ
तुम नहीं रहोगे फिर भी टीम सफ़लताओं के हर शिखर को छुऎगी
पर विनय तुम्हारी कमी तो फ़िर भी खलेगी
शायद ही कोई हो जिससे तुम्हारी जमी न हो
ईश्वर करे हम सभी के बीच विनय की कभी कमी न हो

Friday, August 05, 2016

पिता-पुत्र...

जवान बेटा अपने पिता से बोला
पिताजी अब मैं सयाना हो गया हूँ
और व्यापार को नये समय के अनुसार
आपसे बेहतर ढंग से चला सकता हूँ
पिता बोला बेटा व्यापार को चलाने के लिये
सिर्फ़ नई सोच और तरीके ही काफ़ी नहीं
दूसरों के प्रति कृतज्ञता का भाव और
अपने काम के प्रति निष्ठा और प्यार भी जरूरी है
मुझे विश्वास है की तुम ऎसा कर सकोगे

Sunday, December 20, 2015

मेरी राह है रोशन बड़ी...


मुझे याद है जब इस सफ़र पर चलना किया हमने शुरू
Remember when we started this journey.
हम ही थे चेले यहाँ और हम ही थे अपने गुरु
We are our mentor, and we are our mentee.
हराकर हर ताप को कुंदन से हम हरदम खिले
Defeating all odds, we always shine like a gold.
खुशियाँ मिलीं शोहरत मिली और कई नये मकसद मिले
During the course of journey, we got lot of joy, recognition, and new avenues to conquer.
आज फ़िर से आई है वैसी परीक्षा की घड़ी
We are in the testing time again.
अब मैं अंधेरों से क्यों डरूं मेरी राह है रोशन बड़ी
But now I am not worrying about the darkness as I am already enlightened.


बिहार की जीत...

अमृतकुंड के पास पहुँच कर भी चूके लालू
पुत्र मोह में फ़ँसकर आज फ़िर समोसे तक ही रह गये लालू
खुशी हुई जब बिहार में अहंकार हारा और नीतीश परचम के दंड बने लालू
आशा है अब इस जीत के बन न जायें दंड लालू

Monday, August 03, 2015

तैयारी जीत की...

जीवन में कई बार हार के बाद जीत मिलती है
लेकिन आज हर तरफ़ तैयारी जीत की लगती है
हार में नेत्रत्व की सबसे अधिक जरूरत होती है
लेकिन वह भी आज हार को निरुत्साहित और अकेला छोड़
जीत को गले लगा रहा है
बोर्नवीटा भी तैयारी जीत की करा रहा है
हार में संभालकर स्फूर्ति देने वाला टॉनिक
बाजार में दिखता नहीं
शिक्षक और स्कूल भी अव्वल १० बच्चों

जिन्हें स्कूल की जरूरत नहीं
की सफ़लता पर इठला रहें हैं
और जिन्हें मदद की सख्त जरूरत है
उन्हें ठेंगाँ दिखा रहें हैं
क्यों न हम सब जीत के साथी और हार के संबल बनें

Tuesday, July 21, 2015

EMC...

कभी-कभी सोचता हूँ
EMC तुम ना होती तो क्या होता....
तुमसे मिलकर ही मैंने सीखा रोटी कमाने का कौशल
कैसे अनुज बनकर भी बड़े काम किये जा सकते हैं
और कीर्ति को पाया जा सकता है
यहाँ ही मन जान सका
वैभव के साथ धीरज का होना कितना जरूरी है
अपने काम को निष्ठा और ईमानदारी से करते हुये अमर हुआ जा सकता है
हँसी-विनोद संग मधुरता से हर परिस्तिथी का सामना करना
अच्छे काम का श्री गणेश कभी भी किया जा सकता है
और उसकी जय निश्चित है
कभी-कभी सोचता हूँ
EMC तुम ना होती तो क्या होता....

Friday, April 24, 2015

कौशल...

समझ नहीं आ रहा कहाँ से शुरू करूँ कौशल
क्योंकि सारे ही बड़ॆ कमाल के हैं तुम्हारे कौशल
सिर्फ़ जबाब ही नहीं कठिन सवालों को बड़ी आसानी से खा जाने का कौशल
हर परिस्तिथि में रिसोर्स जुगाड़ने का कौशल
टीम से जुड़ाव का कौशल
कौशल से कहाँ किसी को खतरा लगता है
कौशल तो सभी को अपना लगता है
हमें गम है तुम्हारे दूर जाने का
लेकिन साथ ही खुशी है की वो ही कारण बना है आज तुम्हारा अपनॊ के पास जाने का
हम जानते हैं की आज हम तुम्हें नहीं रोक पायेगें
क्योंकि जिस तरह जम्बूरियत में बहूमत सर्वोपरि होता है
वैसे ही परिवार, ससुराल, पुराने दोस्त, वड़ा-पाव, चौपाटी, पुणे-मुंबई हाईवे, शाम के बाद पुणे की रुमानियत....सब की सब आज बहूमत बनकर हमारे सामने खड़े हो गये हैं
छोड़ो यार अब लिखना समाप्त करते हैं .....बेकार में सेंटी होना ठीक नहीं...वैसे भी तुम तो जा ही रहे हॊ हर क्वार्टर आने के लिये...और साथ में कुछ क्वार्टर चड़ाने के लिये JJJJ

Saturday, April 04, 2015

चैनल चेंज...

चैनल...सरकार किसी की भी हो ईमानदार आई.ए.एस आफ़िसर अशोक खेमका का ट्रांस्फ़र जारी
चैनल चेंज...गाना चल रहा है..♪♪♫♫..ईमानदारी की बिमारी छोड़ के आजा...छोड़ के आजा
चैनल चेंज...साइना नहवाल दुनियाँ की नंबर १ बैडमिंटन खिलाडी बनी
चैनल चेंज...गाना चल रहा है..♪♪♫♫..सारी नाइट बेशर्मि की हाइट-हाइट...एक तूउउउ एक मैं और हो डिम-डिम ये लाइट
चैनल चेंज...अटल जी ने कहा नरेन्द्र भाई राजधर्म निभायें
चैनल चेंज...अपनी सरकार द्वरा अटल जी को भारत रत्न दिये जाने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने खुशी जताई है

Saturday, January 10, 2015

हर मौसम आम...

अब कोई मौसम खास नहीं
शौक बड़ी है चीज यहाँ
किसी कारण की मोहताज नहीं
हर मौका पीने का मौका
खोलो बोतल जाम
खाईये श्रीमान हर मौसम आम...


धार्मिक होना अब और हुआ आसाँ
बस कहो तुम गर्व से जय-जय श्री राम
खाईये श्रीमान हर मौसम आम...


लगंड़ा, केसर, मल्लिका सब एकरस हो गये
बोतल से पीजिये अब हर तरह का आम
खाईये श्रीमान हर मौसम आम...


होली बेरंग है दिवाली की सेल है
धीरज का साथ नहीं वैभव की रेल है

प्रकृति से दूर हुई उत्सवों की शाम
खाईये श्रीमान हर मौसम आम...

Saturday, October 04, 2014

मक्कारों का दर्द...

आजकल मक्कार लोग बड़े परेशान हैं
कमबख़्त सीधे लोग नहीं मिलते
धोखा देने की तलब है
पर धोखा खाने वाले नहीं मिलते
अपने बच्चे की नेकी से परेशान पिता बोला
मास्टर जी जमाना बदल गया है

थोड़ा आप भी समझदारी दिखायें
ईमानदारी हम मेनेज कर लेगें
आप तो कृपया इसे मक्कारी सिखायें
हर तरफ मक्कारों की जमात से
हम प्राकृतिक संतुलन खो रहे हैं
जहाँ इरादे छोटी-मोटी लूट के
वहाँ मर्डर हो रहे हैं
मक्कारों का दर्द समझते हुए
हम उनके साथ डटे हैं
दुनियाँ में सीधे और ईमानदार
लोगों को बढ़ाने में जुटे हैं

Thursday, December 17, 2009

राम मेरा भाई तेरे राम से...

राम मेरा भाई तेरे राम से
इतना यार झगड़ता क्यों है
मेरे राम मुझे तारेंगें
तारें तुझे तेरे रघुवीर
सहज-सरल सी बात है लेकिन
तू फ़िर भी नहीं समझता क्यूँ है
राम मेरा भाई तेरे राम से....

राग-द्वेष अपने अंतर् में
कहाँ राम को भाते हैं
मन को करते दुखी
देह को रोग नया दे जाते हैं
इन्हें हराकर राम को अपने
तू प्रसन्न नहीं करता क्यूँ है
राम मेरा भाई तेरे राम से....

धर्म-अधर्म और सत्य-असत्य का
युद्ध यहाँ कोई नया नहीं
दिया कृष्ण ने अर्जुन को वह
ज्ञान अभी तक मरा नहीं
निर्भय बन इन संघर्षों से
तू फ़िर इतना डरता क्यूँ है
राम मेरा भाई तेरे राम से....

Wednesday, January 28, 2009

दशानन...


कैसे राम ने जीता रावण
कैसे राम बने जगदीश
शीश एक क्यूँ जीत ना पाया
दस सिर लेकर भी दसशीश
निश्छल मन और निर्मल ह्रदय
जहाँ राम की ढाल बने
मलिन ह्रदय और कपट वहीं पर
दशानन का काल बने
बुद्धी-कौशल और राजनीति का
जहाँ रावण ने अभिमान किया
भेज अनुज को उसे सीखने
राम ने उसको मान दिया
हर बुराई तुम यहाँ देख लो
दस सिर लेकर आती है
पर धर्मवीर रघुवीर के आगे
वह नहीं टिक पाती है

Thursday, January 08, 2009

साथ उसके आसमाँ है...

पाया नहीं यह ज्ञान से
समझा नहीं विज्ञान से
यह नहीं कोई कला
जिसको तराशा ध्यान से
संस्कारों से मिली जो
यह तो बस एक भावना है
जिसने दिया विश्वास मुझको
इंसान आता है जगत में
हाथ में क्षमता लिये
कोई शिखर ऎसा नहीं
जिसे वो पा सकता नहीं


आदमी कुछ भी नहीं
उसका पता है वह घड़ी

जिसमें है बीता वक्त उसका
हमे तो बस यह चाहिये
अविरत चली इस श्रंखला की
हम बने सुंदर कड़ी

पंछी नहीं टिकता वहाँ

उड़ना जहाँ वह सीखता है
पर जाता नहीं है वह अकेला
साथ उसके आसमाँ है
अब तो बस यह देखना है
कितना वो इसमें जोड़ता है
अगली कड़ी का आसमाँ

सुंदर वो कितना छोड़ता है

Thursday, September 25, 2008

कौन हूँ मैं...

प्रश्न कुछ ऎसे हैं जिनसे
रोज होता रूबरू मैं
कौन हूँ क्या चाहता हूँ
जानने की पीर हूँ
मैं

इंतहानों को दिये अब
साल बीते हैं बहुत
अब भी मगर ये स्वप्न में
आकर डराते हैं बहुत
ज्ञान जो निर्भय बनाये
पाने को गंभीर हूँ मैं
कौन हूँ...


राह जैसे सूर्य की
देती है सबको उष्मा
चन्द्र जैसे दे रहा है
छोड़कर सब उष्णता
राह ऎसी जानने को
हो रहा अधीर हूँ मैं
कौन हूँ...

भगवान तूने है बनाया
आसमाँ सबके लिये
इंसान फ़िर क्यूँ चाहता है
बस इसे अपने लिये
इंसानियत जीते हमेशा
ऎसी एक उम्मीद हूँ मैं
कौन हूँ...

शुष्क ना हो ज्ञान
हमको भावना भी चाहिये
इंसान को सम्मान और
कुछ बोल मीठे चाहिये
मन प्रभू ऎसा बनाओ
सब कहें मंजूर हूँ मैं
कौन हूँ...

Tuesday, September 23, 2008

भरे पेट का ज्ञानयोग...

भरा पेट खाली पेट पर आसन जमाये
पास रखी रोटी को पाने की
असफ़ल कोशिश कर रहे
खाली पेट से कहता है
रोटी तक पहुँचने का
आसान रास्ता न चुनो मित्र
भूख पर विजय ही
हमारे स्वर्णिम भविष्य...
भविष्य शब्द पर अचानक भरा पेट रुका
फ़ुर्ति से रोटी उठाई और बोला
हाँ तो मैं क्या कह रहा था

Sunday, May 25, 2008

कुछ मन के ख्याल...

कितनी लगन से उसने जी होगी जिंदगी
यूँ ही नहीं हँसते हुये यहाँ दम निकलता है


इबादतें वो बड़ी बेमिसाल होतीं हैं
इंसान जब भगवान से आगे निकलता है


जिंदगी में हार को तुम मात न समझो
इंसान ही तो यारों गिरकर संभलता है


पहली नज़र के प्यार से हमको परहेज है
कभी-कभी ही साथ यह लंबा निकलता है


खुशी की देखो गम से हो गई दोस्ती
गम में भी नहीं आँसू यहाँ अब निकलता है

Monday, May 05, 2008

धर्म भी आहत है...

कर्तव्य से बड़कर जहाँ पद है
यह मान नहीं मान का मद है


जहाँ खुलती नहीं वक्त से गाँठें
घर नहीं वो तो बस छत है

कौन फ़िर लगाये वहाँ मरहम
दृड़ जो सबके यहाँ मत हैं

दिल दुखाये जो अगर वाणी
मान लो झूठ जो अगर सच है

कद पर उसके तुम मत जाना
फ़ल नहीं छाया भी रुकसत है

कैसे रहें वहाँ पर खुशियाँ
दर्द एक हाथ का दूजा जहाँ खुद है

उस ज्ञान की क्या भला कीमत
जिसमे न्याय नहीं धर्म भी आहत है

Saturday, April 12, 2008

३ क्षणिकायें...

जीवन कठिन डगर है
जो साँसें नहीं हैं गहरी
कैसे प्रभु मिलेगें
मन जो रहेगा लहरी
~~~~~~~~~~
मैनें धर्म को अधर्म के साथ
चुपचाप खड़े देखा है
मैं अधर्म की अट्टाहस से नहीं
धर्म की खामोशी से हैरान हूँ
~~~~~~~~~~
जहाँ छोड़ रख्खा हो उजाला
सबने भरोसे सूर्य के
वहाँ जलता हुआ एक दीप भी
किसी सूरज से कम नहीं

Sunday, April 06, 2008

लोग...

तेरी इस दुनियाँ में प्रभु जी
रंग-बिरंगे मौसम इतने
क्यों फ़िर सूखे-फ़ीके लोग
थोड़ा खुद हँसने की खातिर
कितना रोज रुलाते लोग
बोतल पर बोतल खुलती यहाँ
रहते फ़िर भी प्यासे लोग
पर ऎसे ही घोर तिमिर में
मेधा जैसे भी हैं लोग
सत्य, न्याय और धर्म की खातिर
लड़ते राह दिखाते लोग
एक राम थे जिनने हमको
लक्ष्मण-भरत से भाई दिये
और यहाँ सत्ता की खातिर
लड़ते देश लुटाते लोग

Saturday, April 05, 2008

रौशनी और अंधकार...

मैनें देखा है रौशनी को
हाथों में अंधकार लिये
अंधकार से लड़ते हुये
निरंतर चल रहे
इस संघर्ष में
रौशनी को थकते हुए
अंत में नहीं रही रौशनी
हमारे बीच
अंधकार आज भी
वैसा ही खड़ा है
~~~~~~~~~~~~~~~~~
मैनें देखा है रौशनी को
हाथों में रौशनी लिये
अंधकार से लड़ते हुये
निरंतर चल रहे
इस संघर्ष में
अंधकार को थकते हुए
अंत में रौशनी बढ़ी है
हमारे बीच
अंधकार आज भी
वैसा ही खड़ा है

Saturday, February 23, 2008

प्राण...

आँसू यह अब झरता नहीं
किसी को चुप करता नहीं
बस गाँठों पर गाँठें
यहाँ कसता है आदमी
एक पल में प्राण गये
तो मुर्दा है आदमी


कहता है तो रूकता नहीं
खुद की भी यह सुनता नहीं

बस छोड़कर यहाँ खुदको
सब जानता है आदमी
एक पल में प्राण गये
तो मुर्दा है आदमी


देह तर्पण में लगा
क्यूँ मन को यह गुनता नहीं
ना खुलकर है हँसता
ना रोता है आदमी
एक पल में प्राण गये
तो मुर्दा है आदमी


कर्मफ़ल और मृत्यु
सबसे बड़े दो सत्य हैं
क्यूँ आज फ़िर इंसानियत को
भूला है आदमी
एक पल में प्राण गये
तो मुर्दा है आदमी

Sunday, February 10, 2008

दूर तक है बहना...

अभिव्यक्ति से बढ़कर रखी थी
अव्यक्त से आशा
इंसानियत को मानकर
सही धर्म की परिभाषा
उसने पहले जितना सहा जा सकता था उतना सहा
फ़िर जितना कहा जा सकता था उतना कहा
पर धीरे-धीरे उसने जाना
गर अकेले चल पड़ा
तो भी मंजिलें मिल जायेंगी
पर अकेले व्यक्त इनको
क्या मैं भला कर पाऊँगा
यह सही यहाँ मैं नहीं
पर प्रतिबिम्ब हैं मेरे सभी
फ़िर क्यों उन्हें है सहना
बस मुझे तो संग इनके
दूर तक है बहना
बस मुझे तो संग इनके
दूर तक है बहना

Monday, February 04, 2008

कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग...

हे केशव तुमने ज्ञान,
कर्म और भक्तियोग समझाकर
अर्जुन का विषाद हर लिया था
पर इस कलयुग में
तुम्हारी कोई जरूरत नहीं
निज स्वार्थ में डूबे पार्थों को
यहाँ कोई विषाद नहीं
इस युग में तुम्हारा कर्मयोग
अब सैनिक नहीं पैदा करता
नाई, पंडित और शिक्षक में
यह क्यों ओज नहीं भरता
भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ़
यह क्यों टंकार नहीं करता
जनता की आहत भावनाओं का
हवाई सर्वेक्षण कर रहे नेता
कर्मयोग को पीछे छोड़
ज्ञानयोग में गोते खा रहें हैं
और भक्तियोग से जनता को
आपस में लड़ा रहें हैं

Tuesday, December 18, 2007

एक और दिन चला गया यूँ ही...

रात हो चुकी थी
दिन भर के थके पंछी
संतुष्ट एवं आनंदमग्न
चहचहा रहे थे अपने घोंसलों में
पेड़-पोधे भी अपार संतोष लिये
सो रहे थे गहरी नींद में
वहीं दूसरी ओर
इंसानों की बस्ती में
छाई हुई थी गहरी उदासी
सब सोच रहे थे
एक और दिन चला गया यूँ ही
बाकी दिनों की ही तरह
भरपूर रोशनी के साथ आया था दिन
साथ में हम भी हुए थे रोशन
पर इतने ही की
जा सकें काम पर
पूर्वाग्रहों में जकड़े
हम ना कर सके
अपने संगियों के
अच्छे कामों की भी तारीफ़

प्रतिस्पर्धा में उलझे
हम ना सुन सके
प्रकृति का गान
नाखुश ही रहे
अपनी छोटी-बड़ी उपलब्धियों पर
ईर्ष्या में फ़से
घुटते रहे दिनभर
रात को जब घर लौटे
तो स्वयं को विचार शून्य पाया
लंबा इंतजार कर रहे बच्चे
लूम पड़े हमपर
निरुत्साहित और उदास
हम ना बन सके बच्चे
अपने बच्चों के लिये

Saturday, December 15, 2007

नेता बनाम राजा...

बिन्देश्वरी दुबे शहर के बड़े लोकप्रिय नेता माने जाते थे । उनके कद का कोई दूजा नेता पूरे नगर में ना था । जनता उन्हें गरीबों का मसीहा मानती थी । कालेज में छात्रों के बीच उनकी बड़ी चर्चा हुआ करती थी । राकेश भी उन्हीं छात्रों में एक था । राकेश के दादा स्वर्गीय पन्नालाल जी स्वतंत्रता संग्राम सैनानी थे । इसके कारण उसके मन पर राष्ट्रवादी विचारों का बड़ा प्रभाव था । लोगों से नेता जी की बढ़ाई सुनकर राकेश का मन स्वत: ही उनके व्यक्तित्व से प्रभावित हो रहा था । वह स्वयं भी अपने आपको भविष्य में एक राष्ट्र समर्पित नेता के रूप में देखता था । उसने सोचा दुबे जी इतने बड़े नेता हैं । मुझे उनके सानिध्य में रहकर नेतृत्व के गुर और उनमे आने वाली समस्याओं का अनुभव लेना चाहिये । यह सोचकर राकेश नेता जी के घर पहुँचा । घर के चोकीदार ने रोका और कहा की नेता जी किसी एरे-गेरे से नहीं मिलते । मिलना हो तो महिने में एक दिन जनता दरबार लगता है तब आ जाना मिलवा देंगे । राकेश सोचने लगा ये कैसे नेता हैं । जिन्होंने नेता बनाया उनसे ही महिने में एक बार मिलते हैं । और यह जनता दरबार क्या होता है दुबे जी नेता हैं या कोई राजा । खेर मन में उनसे मिलने की लगन के कारण राकेश जनता दरबार वाले दिन नेता जी से मिलने पहुँचा । उसने देखा नेता जी कुर्सी पर बैठें हैं और बहुत सारे लोग सामने जमीन पर अपनी अर्जी लेकर अपने नंबर का इंतजा़र कर रहें हैं । जब राकेश का नंबर आया तो नेता जी उससे बोले आपकी अर्जी कहाँ है । यह सुनकर उसने उन्हें अपने आने का कारण बताया । नेता जी बोले अरे भैया इस सब में क्यों पड़ते हो । हम हैं ना तुम्हारे नेता । हमे अपना काम बताओ । जनता हमारे राज में खुश है । ऎसा कोई काम है जो हम नहीं कर सकते । राकेश सोच रहा था यह जनता नहीं आपकी प्रजा है और आप नेता नहीं एक राजा हैं । आपने सच कहा आप सब कुछ कर सकतें हैं । बस कोई सच्चा राष्ट्रवादी नेता नहीं पैदा कर सकते ।

Saturday, September 29, 2007

सपने भी सुंदर आयेगें...

संस्कारों से मिली थी
उर्वरा धरती मुझे
स्नेह का स्पर्श पाकर
बाग पुष्पित हो गया
भावनाओं से पिरोया
सूत में हर पुष्प को
माला ना फ़िर भी बन सकी
अर्पण जिसे मैं कर सकूँ
हे ईश सविनय आज तुमको

प्रयास भगीरथ का यहाँ
हमसे यही तो कह रहा
असंभव कुछ भी नहीं
सत्कर्म पर निष्ठा रखे
गर आदमी चलता रहे

फ़िर सोचता हूँ
क्या कर्म है सबकुछ जहाँ में
भाग्य कुछ होता नहीं
सच है अगर यह बात तो
श्रमवीर सब हँसते जगत में
एक भी रोता नहीं

कर्म है सबका सवेरा
भाग्य कुछ सपनों सा है
कर्म अगर अच्छे रहे
तो सपने भी सुंदर आयेगें

Tuesday, September 18, 2007

अपहरण...

अभी कुछ दिन पहले
किसी अपने ने मुझसे कहा
अरे अब तो आप भी हो गये
रीतेश होशंगाबादी
मैं सोचने लगा
अब कहाँ होती है
व्यक्ति की पहचान उसके
गाँव या शहर से
उसकी पहचान
अब सिर्फ़ इससे है
की वह आदमी है या औरत
और हाँ उसकी उम्र क्या है
मेरा शहर जो
समय से पहले ही
जवान हो गया है
मुझे बूढ़ा घोषित कर चुका है
लेकिन वो यह नहीं जानते
की मैं शहर में नहीं
शहर मेरे अंदर रहता है
और जब तक ऎसा है
मेरे जैसा हर व्यक्ति
नहीं करने देगा उन्हें
अपने ही शहर की
संस्कृति का अपहरण

Friday, September 14, 2007

एक अच्छी कविता की नींव...

कुछ देर पहले ही की तो बात है
हर तरफ़ लगा हुआ था मेला
कोई भी नहीं था मेरे अंदर अकेला
मिल रही थी ह्रदय को पर्याप्त वायु
मन आश्वस्थ था
और कान भूल गये थे सन्नाटे की आवाज
फ़िर रूक रूककर आने लगीं गहरी साँसें
रह रहकर आने लगी सन्नाटे की आहट
जैसे जा रहा हो कोई दूर मुझसे
अचानक यह सिलसिला भी बंद हो गया
हर तरफ़ भीड़ थी फ़िर भी
मन बिलकुल अकेला हो गया
तुरंत ही मन बावला हो
ढूँढने लगा अपने संगी-साथी
कुछ ही देर की छ्टपटाहट के बाद
मन रूका और सोचने लगा
किससे कहेगा यह मन
अपने मन की बात
बुध्दिवादी दुनियाँ में
ह्रदय की कविता कौन समझेगा
आजकल किसके पास है
ऎसा धीरज और समय
जो रुकेगा कविता के लिये
एकाएक ही मन
उत्साहित हो चल दिया
चिट्ठों की दुनियाँ में
यहाँ भी सबकुछ प्रिय नहीं मिला
पर मिले प्रियंकर
जिनकी कवितायें बता रहीं थीं
कविताओं के कई आयाम
यहाँ भी कोई फ़ुरसत में नहीं मिला
पर मिले फ़ुरसतिया
जिनके जीवन स्पर्शी संस्मरण
ले गये मुझे साहित्य की गोद में
यहाँ मिली मुझे लालाजी की उड़न तश्तरी
जिसमें बैठते ही मन
भूल गया अपना अकेलापन
यहाँ ही मन मिल सका
एक अदभुत दिव्य से
जो पारखी था शब्दों और भावनाओं का
फ़िर मिला एक गीतकार
जिनके श्रीमुख से प्रस्फ़ुटित हो
निर्मल सरिता से बह रहे थे गीत
इन्हीं सब भावनाओं के बीच
मैंने देखा
मन फ़िर रख रहा था
एक अच्छी कविता की नींव

Sunday, August 26, 2007

मेरी रागिनी मनभावनी...

मेरी रागिनी मनभावनी
मेरी कामिनी गजगामिनी
जीवन के पतझड़ में मेरे
तू है बनी मेरी सावनी

शब्द सब खामोश थे
बेरंग थी मन भावना
संगीतमय जीवन बना
जो तू बनी मेरी रागिनी

आँखों को जो अच्छा लगे
सुंदर कहे दुनियाँ उसे
सिर्फ़ सुंदर तुम्हें कैसे कहूँ
जो तू तो है मनमोहिनी

तू है कहीं कोई डगर
मैं जानता हूँ ये मगर
शामें वहाँ खुशहाल हैं
और है तिमिर में रोशनी

जीवन की है यह दोपहर
अभी दूर है अपनी सहर
मंजिल का वो मेरा यकीं
तेरा साथ है मेरी संगिनी

मेरी रागिनी मनभावनी
मेरी कामिनी गजगामिनी


*सहर=सुबह
**तिमिर=अंधेरा

Saturday, August 18, 2007

शेर और भैंस...

रोज-रोज की मारामारी से तंग आकर
भैंसों ने सोचा चलो शेरों से संधि की जाये
शेरों की जरूरत को ध्यान में रखते हुये
तय हुआ कि रोज दो भैंसें शेरों को सौंप दी जायेगीं
जानकर शेरों का चेहरा खिल गया
सोचने लगे चलो बैठे-बैठे खाने को मिल गया
उधर भैंसों के झुंड भी निश्चिंत हो जंगल में चरने लगे
डर को अपने जीवन से हमेशा के लिये हरने लगे
पर यह शांति कुछ दिनों की मेहमान थी
अपने स्वभाव के अनुसार

शेरों ने भैंसों पर फ़िर हमला कर दिया
कोई और रास्ता ना होता देख
भैंसों ने तय किया कि अब 

शेरों से संधि नहीं
एकजुटता के साथ मुकाबला किया जायेगा
धीरे-धीरे फ़िजा़ बदली

अब भैंसें मरने की बजाय शहीद होने लगीं
उनके बच्चों की आँखों में डर के बजाय वीरता दिखने लगी
शेरों की क्या कहें

आजकल वो भी झुंड में चल रहें हैं
शेर तो कम कुछ-कुछ
भैंसों से दिख रहें हैं

Monday, August 13, 2007

पति-पत्नी...

पति-पत्नी
साथ रहते रहते
कुछ-कुछ एकसा
दिखने लगते हैं
बहुत कुछ एकसा

सोचने लगते हैं
आजकल यह सोचकर
वो जरा डर रहें हैं
इसलिये चेहरे पर कम
विचारों पर अधिक
ध्यान दे रहें हैं

Tuesday, July 31, 2007

मुझे जलाने में...

वो इतना जलते हैं
फ़िर भी राख नहीं बनते
मैं सोचकर हैरान हूँ
थोड़ा परेशान हूँ
कितना जलना पड़ता होगा उन्हें
थोड़ा मुझे जलाने में


आजकल नज़र उनकी
हमसे नहीं मिलती
हमे देखते ही वो
रास्ता बदल लेते हैं
मैं सोचकर हैरान हूँ
थोड़ा परेशान हूँ
कितना गिरना पड़ता होगा उन्हें
थोड़ा मुझे गिराने में

पृष्ठभूमि...

आजकल हर छोटी बड़ी बात पर
हो जाता है संघर्ष
बह जाता है खून
पहले की तरह
अब कम ही निकलता है
बातचीत और शान्ति से
समस्याओं का समाधान


आज फ़िर दुर्योधन ठुकरा रहें हैं
कृष्ण का शान्ति संदेश
और बना रहें हैं बंदी
इंसानियत और प्रेम को


धृतराष्ट्र का मन
आज भी यही कह रहा है
मन का बुरा नहीं है
मेरा दुर्योधन
प्रतिभावान दानवीर कर्ण भी
दे रहें हैं अधर्म का साथ
और पितामह निभा रहें हैं
अपनी अंधी निष्ठा


सब मिलकर फ़िर
बना रहें हैं
एक और युद्ध की पृष्ठभूमि
जिसमे मारे जायेगें
कर्ण और दुर्योधन
नहीं बच सकेंगें पितामह
और समय से पहले ही
मारा जायेगा वीर अभिमन्यु

Saturday, July 21, 2007

घुटन होती है मुझे...

आदमखोर शेर को मारने के लिये
गाँव वालों की मेहनत से बने मचान से
बंदूकधारी हाथों को डर से काँपता देखकर
घुटन होती है मुझे


अन्याय की अट्टाहस से
मुकाबले के लिये तैयार निहत्थे लोगों से
मशीनगन लिये पुलिस वाले को यह कहता देखकर
की छोड़ो यार घर जाओ क्यों पंगा लेते हो
घुटन होती है मुझे


अपने कठिन परिश्रम से
कठोर धरती को चीरकर

सभी के लिये भोजन निकालने वाले
किसान को गरीबी से तंग आकर
आत्महत्या करने को मजबूर देखकर
घुटन होती है मुझे


जब नारंगी, नारंगी नहीं लगती
नीबू को शिकायत होती है अपने खट्टा होने से
और सारे फ़लों का स्वाद एकसा होते देखकर
घुटन होती है मुझे


जब समर्थ को उदासीन पाता हूँ
बहुत बड़े पदों पर बहुत छोटे लोगों को देखता हूँ
और जिन्हें इंसानियत का ज्ञान नहीं
उन्हें देश और समाज के प्रति कर्तव्य निभाता देखकर
घुटन होती है मुझे


जब घंटों बैठकर सोचने
और कागद कारे करने के बाद भी
कह नहीं पाता हूँ मन की बात
ऎसी अव्यक्त रह गई भावनाओं की घुटन में
घुटन होती है मुझे

Monday, July 16, 2007

किरदार...

आफ़िस से घर लौटते समय रास्ते में मैंने देखा की सड़क के एक तरफ़ काफ़ी लोग जमा हैं । मालूम हुआ मशहूर फ़िल्म अभिनेत्री नताशा की कार सामने से आते ट्रक से टकरा गई है । इस दुर्घटना में उन्हें गंभीर चोटें आयी हैं और उन्हें नजदीक के अस्पताल ले जाया गया है । घटना से दुखी मैंने अपनी कार को आगे बढ़ाया । उनके अभिनय को पसंद करने के कारण मेरा मन सहज ही उनके बारे में सोच रहा था । वे जीवन के चोथे दशक में थी और पिछले दस वर्षों से उन्होंने कई शानदार किरदार निभाये थे । अपनी फ़िल्मों में वे ज्यादातर एक अच्छी पत्नी और माँ का किरदार किया करतीं थीं । जीवन में आदर्श और सिद्धांत लिये चरित्रों को वो बड़ी सहजता से निभाती थीं । देखकर लोग भूल ही जाते थे की वो अभिनय कर रहीं हैं । इसलिये असल जिन्दगी में भी लोग उन्हें उनके फ़िल्मी चरित्रों जैसा नेक मानते थे । सो़चते हुए घर कब आ गया पता ही नहीं चला । अगले दिन अखबार से पता चला की गाड़ी चलाते वक्त नताशा प्रतिबंधित दवाओं के नशे में थीं । दो साल पहले उनका अपने पति से तलाक हो गया था । उनका इकलौता बेटा जो पाँच साल का है अपने पापा के साथ रहता है । तलाक के वक्त नताशा ने बच्चे को अपने पास रखने में असमर्थता जताई थी । यह सब पढ़कर मैं गहरी सोच में डूब गया । मन कह रहा था नताशा जी ऎसी कैसे हो सकतीं हैं ? सोच रहा था फ़िल्मों के लिये सच्चे और महान किरदार हमारे जीवन से चुराये जा सकतें हैं । परन्तु जीवन में सच्चा इंसान बनने के लिये तो ऊँचे जीवन मूल्यों और संस्कारों की ही जरूरत होती है ।

Saturday, June 02, 2007

गुम हो गया देश कहीं...




इस गुर्जर आंदोलन में
आरक्षण के आवाहन में
इसकी किसको चिंता है
अपने कितने गुजर गये

पटरी सारी उखड़ गई
रेल एक भी चली नहीं
लोगों के इस रेले में
गुम हो गया देश कहीं

कुछ इससे ही खुश हैं
की उनकी ऎसी चलती है
उनके एक इशारे पर

कुछ बसें जला दी जातीं हैं

देश नहीं एक भीड़ हूँ मैं
मैं कुछ भी कर सकता हूँ
दंडित कैसे करोगे मुझको
मैं फ़िर भी बच सकता हूँ

थोड़ा रूककर सोचें हम सब
जिम्मेदारी है यह किसकी
अच्छा होना तो अच्छा है
अब आगे इसके बढ़ना होगा

गर नेता तुम नहीं बने तो
इनसे शासित होना होगा
अपने भविष्य के सपनों में
राष्ट्र को शामिल करना होगा

Saturday, May 12, 2007

हमको एलर्जी हो गई...

छींक मार मारकर हर नस हमारी हिल गई
क्या बतायें यारों हमको एलर्जी हो गई
कह रहें हैं मित्र
और दिल खोलकर बधाई भी दे रहें हैं मित्र
ये रोग बड़े लोगों के तुझको कैसे हो गये
छोड़कर हमें अब तुम शामिल बड़ों में हो गये
कुछ यूँ हमारी गिनती
यारों बड़ों में हो गई
क्या बतायें यारों हमको एलर्जी हो गई..
जब हमने यह जाना तो सिर अपना धुन लिया
हमको एलर्जी क्योंकि अब फ़ूलों से हो गई
दुनियाँ दिवानी जिसकी उससे ही दूरी हो गई
क्या बतायें यारों हमको एलर्जी हो गई..
है दवा जरूरी पर दुआ भी चाहिये

अपनों के सहारे हालत जरा संभल गई
क्या बतायें यारों
हमको एलर्जी हो गई..

सब राम की माया है...

काँशीराम के रथ की
माया सारथी बन गई
आज देखो यूपी में
माया की चल गई
हारे थे तुम जब
कुछ यूँ कहा था तुमने
"तिलक तराजू और तलवार
इनको मारो जूते चार"
पा गये बहुमत जो
सभी का सम्मान किया
लोकतंत्र की जीत में
माया मिसाल बन गई
आज देखो यूपी में
माया की चल गई
हारे अभिनेता जो
बन रहे थे नेता
वो नेता भी हारे
जो सिर्फ़ थे अभिनेता

दलालों की मंडी में
नीलाम साईकिल हो गई
आज देखो यूपी में
माया की चल गई
नफ़रतों की आँधियों में
कुछ कमल क्या खिल गये
मान लिया तुमने की
मौसम बदल गये

राम सबके ह्रदय में
माया भी मिल गई
आज देखो यूपी में
माया की चल गई

Tuesday, May 08, 2007

श्रीमान श्रीमती...

सुनो जरा श्रीमान जी
ना बनिये नादान जी
जानो अपना मान जी
पत्नि हैं आपकी श्रीमती
समझो ना उनको मूढ़मति
..............
सुनो जरा ओ श्रीमती जी
बनिये ना यूँ अनजान जी
पति हैं आपके श्रीमान जी

उनके मान से मर्यादा है
रखें जरा इसका ध्यान जी

Sunday, April 22, 2007

मैं बकरा नहीं इंसान हूँ...

तालिबानी विचार ने एक
बारह साल के लड़के से
कहकर की यह गद्दार है
अपनी ही कौम के
एक युवक की गर्दन
हलाल करवा दी
जिसकी फ़िल्म टीवी
चेनलों ने हम तक
हिफ़ाजत से पहुँचा दी
अमानवीयता की
हर सीढ़ी ये लाँग चुके हैं
अहसास अपने मार चुके हैं
नैतिकता को बेच चुके हैं
किन्तु अभी भी नहीं चुके हैं
वह हर विचार
तालिबानी विचार है
जो इंसान से
उसका विवेक छीनकर
उसे जानवर बनाता है
नियमित रूप से घर में
बकरा हलाल करते करते
हम संवेदनहीन और
भावशून्य होते गये
उस पर चरमपंथी विचारों से
पता ही नहीं चला
कब हम स्वयं बकरा हो गये
इसलिये अब द्रश्य बदल गया है
अब एक बकरा
दूसरे बकरे को
हलाल कर रहा है

Friday, April 13, 2007

न्यायप्रिय और सत्यनिष्ठ...

संस्कार से न्यायप्रिय और सत्यनिष्ठ वह
भाग्यवादी और धार्मिक नहीं था
धर्म और इंसानियत को ही
भगवान की पूजा मानता
समाज को बदलने का उसका
जोश देखते ही बनता
अन्याय के प्रति उसका
रोष चकित करता


पर धीरे-धीरे उसने जाना
महत्व इस बात का नहीं
कि कोई क्या बोल रहा है
महत्व इस बात का है
कि वह कौन है और
कहाँ से बोल रहा है


इंसानियत को पूजा मानने वाला
कभी-कभी थक जाने पर
चिड़कर कहता
सबकुछ अपने हाथ में नहीं होता
भाग्य भी भला कोई चीज़ है

भगवान की मर्जी के बिना
एक पत्ता भी नहीं हिलता

पर जैसे हारना तो
वह जानता ही ना था
संघर्ष को ही जीवन मानता
पूछने पर कहता
यह कोई संकल्प नहीं है
पर थक कर, हार हम जायें
ऎसा कोई विकल्प नहीं है

Sunday, April 08, 2007

इंसानियत के वास्ते...

यह कविता इराक युद्ध में निरंतर हो रही निर्मम तबाही के कारण ह्रदय से प्रस्फ़ुटित हुई है.......
जाने कब रूकेगा यह रोज का विध्वंस
आज फ़िर कुछ कोपलों ने साथ छोड़ा पेड़ का
कब तलक मरते रहेंगे ख्वाब कच्ची नींद में
जान लो तुम मौत इनकी यूँ ना खाली जायेगी
तुम अगर बच भी गये जो आज अपने पाप से
कैसे बचोगे तुम बताओ इस निहत्थे श्राप से
पीढ़ियाँ बच ना सकेंगी घोर इस संताप से
है अशुभ सबकुछ वहाँ जहाँ आह है निर्दोष की
हर घड़ी शुभ है जो रोके घोर इस अन्याय को
इंसान वह है जो चले इंसानियत के रास्ते
अब भी समय है चेत जाओ इंसानियत के वास्ते
जिदंगी की राह में ना हो मौत का संकल्प कोई
और वक्त को भी रोक दो गर बच सके निर्दोष कोई

Tuesday, March 27, 2007

उपमा मुझे बहुत पसंद है...

यह जानकर की घर में आज उपमा बना
मन हो गया प्रसन्न जो था कुछ अनमना

अपने आप में ही पूर्ण होता है उपमा
नहीं चाहिये इसे रंग-बिरंगी सब्जियों का साथ
बस सूजी को देशी घी में थोड़ी देर तक
मातृप्रेम रूपी हल्की आँच में पकाईये
माँ के समान शीतल थोड़ा दही मिलाईये
माँ की डाँट जैसी मीठी नीम के साथ
माँ की खुशबू लिये राई का तड़का लगाईये

लीजिये हो गया उपमा तैयार
न तो इतना तरल की समेटा न जाये
और न ही इतना शुष्क की खाया न जाये
बिलकुल माँ के मन की तरह
अनुशासित परंतु संवेदनशील

माँ के पास ले जाता है उपमा
दूजा नहीं कोई है तेरे जैसा
तुझे कैसे दूँ किसी और की उपमा

उपमा का माँ से गहरा संबंध है
और अब यह कोई राज नहीं
की उपमा मुझे बहुत पसंद है

Thursday, March 15, 2007

कुछ मन के ख्याल..

तोड़कर मर्यादा हवा पत्तों को यूँ न उड़ा ले जाती
अगर शाखें पत्तों को सिद्दत से संभाले होतीं

तुम अपनी बात दूसरों को जरूर सुना पाते
अगर आवाज तुमने अपनी थोड़ी भी सुनी होती

रुका नहीं मैं आज उस तड़पते इंसान के लिये
गर है तड़प तो रुकुँगा कल हर इंसान के लिये


मैने कब चाहा की दुनियाँ डरे मुझसे
पर झुकी गर्दन अक्सर ही कटी है मेरी


जला हूँ हर बार जो पैमाना बनाया दूसरों को मेंने
खिला हूँ हर बार जब पैमाना मैं खुद बना होता हूँ

आप किसी के लिये कुछ करें ये अच्छी बात है
वो स्वयं के लिये कुछ कर सके ये सच्ची बात है

Thursday, February 22, 2007

कैसे दूँ तुम्हें बधाई मैं....

अपने चिंतन को जीते हो
कितनी तुम पीड़ा सहते हो
कितना तुम अंदर मरते हो
तब जाकर कविता गढ़ते हो
ऎसे ओज पूर्ण भावों पर

गहन वेदना में प्रसूत सी
मुख से फ़ूट पड़ी रचना पर
श्रद्धा से झुकता है यह मन

और देता तुम्हें सलामी है
कैसे दूँ तुम्हें बधाई मैं
कैसे दूँ तुम्हें बधाई मैं

Monday, February 19, 2007

कठिन होता है....

आसान होता है कहना
पाप से नफ़रत करो पापी से नहीं
कठिन होता है पापी से नफ़रत न करना

आसान नहीं होता सुख-दुख में समान रहना
कठिन होता है दुखों में विचलित न होना
कठिन होता है शीशे का पत्थरों के बीच रहना
कठिन होता है एक घाघ इंसान के लिये
यह समझना कि दुनियाँ में
ज्यादातर लोग घाघ नहीं होते
तो फ़िर क्यों रखता है भगवान
विपरीत प्रकृति वालों को साथ-साथ
जैसे नाजुक गुलाब के साथ होते हैं काँटे

शायद जैसे काँटों की चुभन में ही
होता है फ़ूलों की नरमी का अहसास
वैसे ही अच्छाई की सही जरूरत
तो बुराई के बीच ही होती है

Wednesday, February 07, 2007

मैं कोशिश करूगाँ...

मेरा स्वयं से यह वादा नहीं है
वैसे भी वादों पे कब टिक सका हूँ
मगर आज इतना ही कहना है मुझको
मैं इंसान बनने की कोशिश करूगाँ


धरा ने दिया है भोजन सभी का
गर अपने हिस्से का लेता रहूँ मैं
खाने के लिये जीना अच्छा नहीं है
मैं कम खाने की कोशिश करूगाँ


सच्चाई बयाँ करने की जिद में
वाणी से मेरी कई दिल दुखें हैं
और चैन मेंने भी पाया नहीं है
मैं अच्छा कहने की कोशिश करूगाँ


श्रद्धा में कवियों की हरदम झुका हूँ
खुश हूँ स्वयं को कवियों में पाकर
लिखना मुझे अभी आया नहीं है
मैं सच्चा लिखने की कोशिश करूगाँ

Monday, February 05, 2007

जलती है लौ विश्वास की...

आज देखो बज उठी फ़िर रणभेरी चुनाव की
लोकतंत्री यह व्यवस्था पूंजी है इस राष्ट्र की

ना टीवी ना आश्वासन ना नोट हमको चाहिये
वोट मेरा कर्मयोगी के लिये सम्मान है

मूल्य से ही आज यह उम्मीदवारी पाई है
कैसे रहे फ़िर राजनीति धर्म जीवन मूल्य की

राष्ट्र के स्वामी बने हैं आज एक याचक यहाँ
जनता बनी है आज राजा, भारत भूमि श्रेष्ठ की

पीढ़ियों के पुण्य से जलती है लौ विश्वास की
क्यों करे कोई तपस्या धर्म सेवा त्याग की
दंगा कराकर आप पहले असुरक्षा फ़ैलाईये
फ़िर सुरक्षा बेचकर सत्ता की रबड़ी खाईये