इस गुर्जर आंदोलन में
आरक्षण के आवाहन में
इसकी किसको चिंता है
अपने कितने गुजर गये
पटरी सारी उखड़ गई
रेल एक भी चली नहीं
लोगों के इस रेले में
गुम हो गया देश कहीं
कुछ इससे ही खुश हैं
की उनकी ऎसी चलती है
उनके एक इशारे पर
कुछ बसें जला दी जातीं हैं
देश नहीं एक भीड़ हूँ मैं
मैं कुछ भी कर सकता हूँ
दंडित कैसे करोगे मुझको
मैं फ़िर भी बच सकता हूँ
थोड़ा रूककर सोचें हम सब
जिम्मेदारी है यह किसकी
अच्छा होना तो अच्छा है
अब आगे इसके बढ़ना होगा
गर नेता तुम नहीं बने तो
इनसे शासित होना होगा
अपने भविष्य के सपनों में
राष्ट्र को शामिल करना होगा
देश की चिन्ता किसे हे ??
ReplyDeleteसोचने लायक ! लेकिन हम कब होगें इतने समझदार और जिल्मेदार भी ?
ReplyDeleteजब देश के कर्णधार ही भ्रष्ट हो तो देश का हाल तो यही होना है।
ReplyDeleteआजकल कम लिख रहे हो मगर बड़ा विचार परक.चिन्ता का विषय!!!
ReplyDeleteयही तो सबसे बडी मुश्किल है हम्लोगों को.. हम बस नेताओं को दोष देते हैं बैठे -२.. सरकार को गालियां निकालते हैं.. पर राजनीति में जाना कोई नहीं चाहता..काश! आपकी लिखी पंक्तियां सच हो जाये और हमारे सपनों में राष्ट्र-हित भी शामिल हो..
ReplyDeleteबेहद अच्छा लिखा है आपने..सोचने को मज्बूर करती है कविता..
पटरी सारी उखड़ गई
ReplyDeleteरेल एक भी चली नहीं
लोगों के इस रेले में
गुम हो गया देश कहीं
कुछ इससे ही खुश हैं
की उनकी ऎसी चलती है
उनके एक इशारे पर कुछ
बसें जला दी जातीं हैं
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बहुत बढ़िया, सत्य है-दीपक भारत दीप
सही।
ReplyDeleteहमें अपने आरामदायक कमरों से बाहर निकलना ही होगा।
Very nicely put.... really appreciated.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी व सामायिक कविता है आप की,
ReplyDeleteसब लोग अपनी अपनी रोटियां जनता को तपा कर सेक रहे है... मगर न जाने क्यों जनता है कि चेतती ही नहीं..
आप की आवाज देश की आवाज है... लिखते रहिये
रीतेश जी,
ReplyDeleteअच्छे प्रश्न उठाये हैं आपने। काश! आपकी यह आवाज़ उनके कानों तक पहुँच पाती।
बहुत अच्छी कविता है।
ReplyDeleteनेताओं को देश की नहीं, केवल अपनी कुर्सी की पर्वाह है। आजकल उनका मंत्र हैः
नगद माल की लूट है, लूट सके तो लूट
चूका तो पछतायेगा, जब कुर्सी जायेगी छूट।।
साम, दाम,दण्ड, भेद हैं, चारों तेरे यार;
घूंस, घोटाला, मार-धाड़ पर तेरा है अधिकार,
सत्य की माला दिखा दिखा कर, कह ले जितनी झूट।।
कितनी विचारशील कविता है जो कुछ मन में हलचल कर अपने को आईने के सामने खड़ा कर दिया… आज तो यह बोध ही नहीं रहा कि हम क्या कर रहे हैं… एक सुंदर समसामयिक रचना के लिए बधाई।
ReplyDeletegreat thoughts!
ReplyDeleteइस गूजर आंदोलन में
ReplyDeleteआरक्षण के आवाहन में
इसकी किसको चिंता है
अपने कितने गुजर गये
पटरी सारी उखड़ गई
रेल एक भी चली नहीं
लोगों के इस रेले में
गुम हो गया देश कहीं
कुछ इससे ही खुश हैं
की उनकी ऎसी चलती है
उनके एक इशारे पर कुछ
बसें जला दी जातीं हैं
देश नहीं एक भीड़ हूँ मैं
मैं कुछ भी कर सकता हूँ
दंडित कैसे करोगे मुझको
मैं फ़िर भी बच सकता हूँ
थोड़ा रूककर सोचें हम सब
जिम्मेदारी है यह किसकी
अच्छा होना तो अच्छा है
अब आगे इसके बढ़ना होगा
गर नेता तुम नहीं बने तो
इनसे शासित होना होगा
अपने भविष्य के सपनों में
राष्ट्र को शामिल करना होगा
har pankti dil ko chu gyi
hIy781 Your blog is great. Articles is interesting!
ReplyDeleteiVH01q Please write anything else!
ReplyDeleteGood job!
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