Saturday, June 02, 2007

गुम हो गया देश कहीं...




इस गुर्जर आंदोलन में
आरक्षण के आवाहन में
इसकी किसको चिंता है
अपने कितने गुजर गये

पटरी सारी उखड़ गई
रेल एक भी चली नहीं
लोगों के इस रेले में
गुम हो गया देश कहीं

कुछ इससे ही खुश हैं
की उनकी ऎसी चलती है
उनके एक इशारे पर

कुछ बसें जला दी जातीं हैं

देश नहीं एक भीड़ हूँ मैं
मैं कुछ भी कर सकता हूँ
दंडित कैसे करोगे मुझको
मैं फ़िर भी बच सकता हूँ

थोड़ा रूककर सोचें हम सब
जिम्मेदारी है यह किसकी
अच्छा होना तो अच्छा है
अब आगे इसके बढ़ना होगा

गर नेता तुम नहीं बने तो
इनसे शासित होना होगा
अपने भविष्य के सपनों में
राष्ट्र को शामिल करना होगा

17 comments:

  1. देश की चिन्ता किसे हे ??

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  2. सोचने लायक ! लेकिन हम कब होगें इतने समझदार और जिल्मेदार भी ?

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  3. जब देश के कर्णधार ही भ्रष्ट हो तो देश का हाल तो यही होना है।

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  4. आजकल कम लिख रहे हो मगर बड़ा विचार परक.चिन्ता का विषय!!!

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  5. यही तो सबसे बडी मुश्किल है हम्लोगों को.. हम बस नेताओं को दोष देते हैं बैठे -२.. सरकार को गालियां निकालते हैं.. पर राजनीति में जाना कोई नहीं चाहता..काश! आपकी लिखी पंक्तियां सच हो जाये और हमारे सपनों में राष्ट्र-हित भी शामिल हो..
    बेहद अच्छा लिखा है आपने..सोचने को मज्बूर करती है कविता..

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  6. पटरी सारी उखड़ गई
    रेल एक भी चली नहीं
    लोगों के इस रेले में
    गुम हो गया देश कहीं

    कुछ इससे ही खुश हैं
    की उनकी ऎसी चलती है
    उनके एक इशारे पर कुछ
    बसें जला दी जातीं हैं
    -------------------
    बहुत बढ़िया, सत्य है-दीपक भारत दीप

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  7. सही।
    हमें अपने आरामदायक कमरों से बाहर निकलना ही होगा।

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  8. बहुत ही अच्छी व सामायिक कविता है आप की,
    सब लोग अपनी अपनी रोटियां जनता को तपा कर सेक रहे है... मगर न जाने क्यों जनता है कि चेतती ही नहीं..

    आप की आवाज देश की आवाज है... लिखते रहिये

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  9. रीतेश जी,

    अच्छे प्रश्न उठाये हैं आपने। काश! आपकी यह आवाज़ उनके कानों तक पहुँच पाती।

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  10. बहुत अच्छी कविता है।
    नेताओं को देश की नहीं, केवल अपनी कुर्सी की पर्वाह है। आजकल उनका मंत्र हैः
    नगद माल की लूट है, लूट सके तो लूट
    चूका तो पछतायेगा, जब कुर्सी जायेगी छूट।।
    साम, दाम,दण्ड, भेद हैं, चारों तेरे यार;
    घूंस, घोटाला, मार-धाड़ पर तेरा है अधिकार,
    सत्य की माला दिखा दिखा कर, कह ले जितनी झूट।।

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  11. कितनी विचारशील कविता है जो कुछ मन में हलचल कर अपने को आईने के सामने खड़ा कर दिया… आज तो यह बोध ही नहीं रहा कि हम क्या कर रहे हैं… एक सुंदर समसामयिक रचना के लिए बधाई।

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  12. इस गूजर आंदोलन में
    आरक्षण के आवाहन में
    इसकी किसको चिंता है
    अपने कितने गुजर गये

    पटरी सारी उखड़ गई
    रेल एक भी चली नहीं
    लोगों के इस रेले में
    गुम हो गया देश कहीं

    कुछ इससे ही खुश हैं
    की उनकी ऎसी चलती है
    उनके एक इशारे पर कुछ
    बसें जला दी जातीं हैं

    देश नहीं एक भीड़ हूँ मैं
    मैं कुछ भी कर सकता हूँ
    दंडित कैसे करोगे मुझको
    मैं फ़िर भी बच सकता हूँ

    थोड़ा रूककर सोचें हम सब
    जिम्मेदारी है यह किसकी
    अच्छा होना तो अच्छा है
    अब आगे इसके बढ़ना होगा

    गर नेता तुम नहीं बने तो
    इनसे शासित होना होगा
    अपने भविष्य के सपनों में
    राष्ट्र को शामिल करना होगा

    har pankti dil ko chu gyi

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  13. hIy781 Your blog is great. Articles is interesting!

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  14. iVH01q Please write anything else!

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आपकी टिप्पणी और उत्साह वर्धन के लिये हार्दिक आभार....