Saturday, February 23, 2008

प्राण...

आँसू यह अब झरता नहीं
किसी को चुप करता नहीं
बस गाँठों पर गाँठें
यहाँ कसता है आदमी
एक पल में प्राण गये
तो मुर्दा है आदमी


कहता है तो रूकता नहीं
खुद की भी यह सुनता नहीं

बस छोड़कर यहाँ खुदको
सब जानता है आदमी
एक पल में प्राण गये
तो मुर्दा है आदमी


देह तर्पण में लगा
क्यूँ मन को यह गुनता नहीं
ना खुलकर है हँसता
ना रोता है आदमी
एक पल में प्राण गये
तो मुर्दा है आदमी


कर्मफ़ल और मृत्यु
सबसे बड़े दो सत्य हैं
क्यूँ आज फ़िर इंसानियत को
भूला है आदमी
एक पल में प्राण गये
तो मुर्दा है आदमी

5 comments:

  1. बहुत खूब। आपने मन की भावनाओं को बडी खूबसूरती से सजाया है। बधाई।

    ReplyDelete
  2. बहुत अच्छी रचना है। यह पंक्तियां बड़ी अच्छी लगीं -
    कर्मफ़ल और मृत्यु
    सबसे बड़े दो सत्य हैं
    क्यूँ आज फ़िर इंसानियत को
    भूला है आदमी
    एक पल में प्राण गये
    तो मुर्दा है आदमी

    ReplyDelete
  3. सचमुच बहुत बढिया कविता , अभिव्यक्ति सुंदर और भावपूर्ण !

    ReplyDelete
  4. बड़े ही दार्शनिक अंदाज में विवेचन किया है…
    एक-2 शब्द सत्य की गीता है…
    मौलिक रचना!!!

    ReplyDelete
  5. bahut khub dada
    likhte rahiye
    bahut aage jana hai

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी और उत्साह वर्धन के लिये हार्दिक आभार....