आँसू यह अब झरता नहीं
किसी को चुप करता नहीं
बस गाँठों पर गाँठें
यहाँ कसता है आदमी
एक पल में प्राण गये
तो मुर्दा है आदमी
कहता है तो रूकता नहीं
खुद की भी यह सुनता नहीं
बस छोड़कर यहाँ खुदको
सब जानता है आदमी
एक पल में प्राण गये
तो मुर्दा है आदमी
देह तर्पण में लगा
क्यूँ मन को यह गुनता नहीं
ना खुलकर है हँसता
ना रोता है आदमी
एक पल में प्राण गये
तो मुर्दा है आदमी
कर्मफ़ल और मृत्यु
सबसे बड़े दो सत्य हैं
क्यूँ आज फ़िर इंसानियत को
भूला है आदमी
एक पल में प्राण गये
तो मुर्दा है आदमी
किसी को चुप करता नहीं
बस गाँठों पर गाँठें
यहाँ कसता है आदमी
एक पल में प्राण गये
तो मुर्दा है आदमी
कहता है तो रूकता नहीं
खुद की भी यह सुनता नहीं
बस छोड़कर यहाँ खुदको
सब जानता है आदमी
एक पल में प्राण गये
तो मुर्दा है आदमी
देह तर्पण में लगा
क्यूँ मन को यह गुनता नहीं
ना खुलकर है हँसता
ना रोता है आदमी
एक पल में प्राण गये
तो मुर्दा है आदमी
कर्मफ़ल और मृत्यु
सबसे बड़े दो सत्य हैं
क्यूँ आज फ़िर इंसानियत को
भूला है आदमी
एक पल में प्राण गये
तो मुर्दा है आदमी
बहुत खूब। आपने मन की भावनाओं को बडी खूबसूरती से सजाया है। बधाई।
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना है। यह पंक्तियां बड़ी अच्छी लगीं -
ReplyDeleteकर्मफ़ल और मृत्यु
सबसे बड़े दो सत्य हैं
क्यूँ आज फ़िर इंसानियत को
भूला है आदमी
एक पल में प्राण गये
तो मुर्दा है आदमी
सचमुच बहुत बढिया कविता , अभिव्यक्ति सुंदर और भावपूर्ण !
ReplyDeleteबड़े ही दार्शनिक अंदाज में विवेचन किया है…
ReplyDeleteएक-2 शब्द सत्य की गीता है…
मौलिक रचना!!!
bahut khub dada
ReplyDeletelikhte rahiye
bahut aage jana hai