तालिबानी विचार ने एक
बारह साल के लड़के से
कहकर की यह गद्दार है
अपनी ही कौम के
एक युवक की गर्दन
हलाल करवा दी
जिसकी फ़िल्म टीवी
चेनलों ने हम तक
हिफ़ाजत से पहुँचा दी
अमानवीयता की
हर सीढ़ी ये लाँग चुके हैं
अहसास अपने मार चुके हैं
नैतिकता को बेच चुके हैं
किन्तु अभी भी नहीं चुके हैं
वह हर विचार
तालिबानी विचार है
जो इंसान से
उसका विवेक छीनकर
उसे जानवर बनाता है
नियमित रूप से घर में
बकरा हलाल करते करते
हम संवेदनहीन और
भावशून्य होते गये
उस पर चरमपंथी विचारों से
पता ही नहीं चला
कब हम स्वयं बकरा हो गये
इसलिये अब द्रश्य बदल गया है
अब एक बकरा
दूसरे बकरे को
हलाल कर रहा है
Sunday, April 22, 2007
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हिन्दी ब्लॉगजगत में स्वागत है. लिखते रहिए अपन आते रहेंगे.
ReplyDeleteबढिया प्रयास है अपने समय को एक दूसरे नज़रिये से देखने का. आज के समय में इसकी काफ़ी अहमियत है. बधाई.
ReplyDeleteबढिया है, रीतेश.
ReplyDeleteरियाज और उनके दोस्तो को अपने इस साहसिक कार्य के लिये भी बधाई पर रियाज आदमी बकरे मे अन्तर समझॊ बकौल रियाज आज के समय में इसकी काफ़ी अहमियत है.
ReplyDeleteनीरज भाई ..बहुत धन्यवाद जो आप हमारे चिट्ठे पर आये....वैसे अपन अब चिट्ठाजगत में नये नहीं हैं
ReplyDeleteरियाज़ जी, लालाजी, और अरूण भाई,
आपकी टिप्पणी का बहुत धन्यवाद ...कृपया ऎसा ही स्नेह बनाये रखें
संवेदन शून्य होती हमारी मानवता का वीभत्स किंतु सत्य चित्रण।
ReplyDeleteबिल्कुल सही।
ReplyDeleteआज की जीवनशैली असहिष्णुता को बढ़ावा दे रही है । धर्म-सम्प्रदाय और राज्नीति इसके मुख्य कारण हैं । चाहे जिहादी हिन्दु अतिवादी हो या मुस्लिम ।
रीतेश जी,
ReplyDeleteमानव का यह कुरूप चेहरा है, परंतु विडम्बना यह है कि जहाँ इसे कभी-कभार कहीं-कहीं दिखना चाहिए था, वो अब अकसर और सर्वत्र दिखाई देता है। अच्छी है कविता।
रितेश भाई,
ReplyDeleteबहुत सुंदर है…प्रत्येक पंक्तियों में एक गहरा अर्थ है और सबसे बड़ी आगाज है…जो छू गई…आया तो था मैं पहले भी पर इधर व्यस्त ज्यादा हूँ तो पहले आ न सका…बधाई!!
Thanks for you work and have a good weekend
ReplyDeleteराजीव जी, हिमांशु भाई,शैलेश, दिब्याम, और डेविड
ReplyDeleteआप सभी की टिप्पणी का हार्दिक धन्यवाद
रीतेश गुप्ता
वर्तमान व्यवस्था का सजीव चित्रण।
ReplyDeleteआश्चर्य हो रहा है कि आज से पहले आपके चिट्ठे पर मेरी नज़र क्यों नही गई।
शुभकामनाएं
वैसे सब इतना कह चुके हैं.. मेरे कुछ कहने की गुंजाईश शायद नहीं बची है.. बस इतना कि इस सत्य को पढ्कर अगर हमारे अंदर की संवेदनायें जाग सके तो सार्थक होग ये प्रयास..
ReplyDeleteसंवेदन हीन व्यक्ति के लिये बकरे और आदमी में कोई फ़र्क नहीं...और क्या ऐसे आदमी को आदमी कहना भी ठीक होगा....उसे तो हैवान ही कहना चाहिये
ReplyDeleterTe5Al Your blog is great. Articles is interesting!
ReplyDeleteEZ6wrV Wonderful blog.
ReplyDeleteHello all!
ReplyDeletePlease write anything else!
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