Sunday, April 08, 2007

इंसानियत के वास्ते...

यह कविता इराक युद्ध में निरंतर हो रही निर्मम तबाही के कारण ह्रदय से प्रस्फ़ुटित हुई है.......
जाने कब रूकेगा यह रोज का विध्वंस
आज फ़िर कुछ कोपलों ने साथ छोड़ा पेड़ का
कब तलक मरते रहेंगे ख्वाब कच्ची नींद में
जान लो तुम मौत इनकी यूँ ना खाली जायेगी
तुम अगर बच भी गये जो आज अपने पाप से
कैसे बचोगे तुम बताओ इस निहत्थे श्राप से
पीढ़ियाँ बच ना सकेंगी घोर इस संताप से
है अशुभ सबकुछ वहाँ जहाँ आह है निर्दोष की
हर घड़ी शुभ है जो रोके घोर इस अन्याय को
इंसान वह है जो चले इंसानियत के रास्ते
अब भी समय है चेत जाओ इंसानियत के वास्ते
जिदंगी की राह में ना हो मौत का संकल्प कोई
और वक्त को भी रोक दो गर बच सके निर्दोष कोई

13 comments:

  1. DOSTI KA PAHLA PAIGAM AAPKE NAM...MUJHE AAPKI SOCH AUR DIL KI ASPASTTA PAR NAJ HAI..MUJHE MALUM NAHI AAP KAUN HO PAR AISA LAGA AAPKI SOCH ME BAHUT BARI SHAKT HAI ...DHANYAWAD

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  2. DOSTI KA PAHLA PAIGAM AAPKE NAM...MUJHE AAPKI SOCH AUR DIL KI ASPASTTA PAR NAJ HAI..MUJHE MALUM NAHI AAP KAUN HO PAR AISA LAGA AAPKI SOCH ME BAHUT BARI SHAKT HAI ...DHANYAWAD

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  3. रीतेश

    अच्छे भाव संजोये हैं

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  4. बढ़िया है रीतेश, लिखते रहो, सही जा रहे हो.

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  5. साहिल जी, राकेश जी, लाला जी,

    आप भावनाओ का समझा ...बहुत धन्यवाद

    रीतेश

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  6. रीतेश जी, आपकी कविता बहुत अच्छी लगी । किन्तु कृपया मोत को मौत कर लीजिए । आशा है आप अन्यथा न लेंगे ।
    घुघूती बासूती

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  7. घुघूती बासूती जी,

    जानकर अच्छा लगा की आपको कविता अच्छी लगी
    अन्यथा लेने की कोई बात नहीं...मेंने ठीक कर दिया है....कृपया ऎसा ही स्नेह बनाये रखें
    बहुत धन्यवाद...

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  8. शायद आज लोग फ़िल्मी हिंसा देखते देखते जीवन की वास्त्विक हिंसा के प्रति असंवेदनशील हो गये हैं।

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  9. fc5FD3 Your blog is great. Articles is interesting!

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  10. actually, that's brilliant. Thank you. I'm going to pass that on to a couple of people.

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आपकी टिप्पणी और उत्साह वर्धन के लिये हार्दिक आभार....