यह कविता इराक युद्ध में निरंतर हो रही निर्मम तबाही के कारण ह्रदय से प्रस्फ़ुटित हुई है.......
जाने कब रूकेगा यह रोज का विध्वंस
आज फ़िर कुछ कोपलों ने साथ छोड़ा पेड़ का
कब तलक मरते रहेंगे ख्वाब कच्ची नींद में
जान लो तुम मौत इनकी यूँ ना खाली जायेगी
तुम अगर बच भी गये जो आज अपने पाप से
कैसे बचोगे तुम बताओ इस निहत्थे श्राप से
पीढ़ियाँ बच ना सकेंगी घोर इस संताप से
है अशुभ सबकुछ वहाँ जहाँ आह है निर्दोष की
हर घड़ी शुभ है जो रोके घोर इस अन्याय को
इंसान वह है जो चले इंसानियत के रास्ते
अब भी समय है चेत जाओ इंसानियत के वास्ते
जिदंगी की राह में ना हो मौत का संकल्प कोई
और वक्त को भी रोक दो गर बच सके निर्दोष कोई
Sunday, April 08, 2007
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DOSTI KA PAHLA PAIGAM AAPKE NAM...MUJHE AAPKI SOCH AUR DIL KI ASPASTTA PAR NAJ HAI..MUJHE MALUM NAHI AAP KAUN HO PAR AISA LAGA AAPKI SOCH ME BAHUT BARI SHAKT HAI ...DHANYAWAD
ReplyDeleteDOSTI KA PAHLA PAIGAM AAPKE NAM...MUJHE AAPKI SOCH AUR DIL KI ASPASTTA PAR NAJ HAI..MUJHE MALUM NAHI AAP KAUN HO PAR AISA LAGA AAPKI SOCH ME BAHUT BARI SHAKT HAI ...DHANYAWAD
ReplyDeleteरीतेश
ReplyDeleteअच्छे भाव संजोये हैं
बढ़िया है रीतेश, लिखते रहो, सही जा रहे हो.
ReplyDeleteसाहिल जी, राकेश जी, लाला जी,
ReplyDeleteआप भावनाओ का समझा ...बहुत धन्यवाद
रीतेश
रीतेश जी, आपकी कविता बहुत अच्छी लगी । किन्तु कृपया मोत को मौत कर लीजिए । आशा है आप अन्यथा न लेंगे ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
घुघूती बासूती जी,
ReplyDeleteजानकर अच्छा लगा की आपको कविता अच्छी लगी
अन्यथा लेने की कोई बात नहीं...मेंने ठीक कर दिया है....कृपया ऎसा ही स्नेह बनाये रखें
बहुत धन्यवाद...
शायद आज लोग फ़िल्मी हिंसा देखते देखते जीवन की वास्त्विक हिंसा के प्रति असंवेदनशील हो गये हैं।
ReplyDeletefc5FD3 Your blog is great. Articles is interesting!
ReplyDeleteZo8niY Nice Article.
ReplyDeleteactually, that's brilliant. Thank you. I'm going to pass that on to a couple of people.
ReplyDeleteMagnific!
ReplyDeletesuperv hai chacha ji
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