Monday, February 05, 2007

जलती है लौ विश्वास की...

आज देखो बज उठी फ़िर रणभेरी चुनाव की
लोकतंत्री यह व्यवस्था पूंजी है इस राष्ट्र की

ना टीवी ना आश्वासन ना नोट हमको चाहिये
वोट मेरा कर्मयोगी के लिये सम्मान है

मूल्य से ही आज यह उम्मीदवारी पाई है
कैसे रहे फ़िर राजनीति धर्म जीवन मूल्य की

राष्ट्र के स्वामी बने हैं आज एक याचक यहाँ
जनता बनी है आज राजा, भारत भूमि श्रेष्ठ की

पीढ़ियों के पुण्य से जलती है लौ विश्वास की
क्यों करे कोई तपस्या धर्म सेवा त्याग की
दंगा कराकर आप पहले असुरक्षा फ़ैलाईये
फ़िर सुरक्षा बेचकर सत्ता की रबड़ी खाईये

 

5 comments:

  1. जब तक लड़ेंगे, ये लड़ाएंगे.

    अच्छी कविता.

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  2. इन लोगो का काम ही है मानवीय भावनाओं को कैसे चोट पहुँचाया जाए…हम भटकेगें वे फायदा उठायेगें…सुंदर सत्य तो टटोलती कविता…बधाई!

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  3. संजय एवं दिव्य भाई आपने कविता पढ़ी और आपको अच्छी लगी ....जानकर अच्छा लगा ।

    कृपया ऎसा ही स्नेह बनाये रखें !!

    रीतेश गुप्ता

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  4. अच्छा है, प्रयास जारी रखो.

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  5. लालाजी,

    आपकी हौसलाअफ़जाई का धन्यवाद ..

    प्रयास जारी रखुगाँ !!

    रीतेश गुप्ता

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आपकी टिप्पणी और उत्साह वर्धन के लिये हार्दिक आभार....