Thursday, October 25, 2018

नेतृत्व...

समझ नहीं आ रहा कहाँ से शुरु करुँ
मानो जैसे कल ही की तो बात है
नई सोच के साथ उत्साहित मुस्कुराता हुआ नया चेहरा
आया और जल्द ही सभी के दिलों दिमाग में छा गया
नये पुरस्कारों का सृजन, compliance , quality , content
लगभग हर जगह हमने नई ऊंचाइयों को छुआ
तनाव को अपने तक सीमित रखने की आपकी अद्भुत क्षमता ने
टीम को निर्भय होकर निरन्तर आगे बढ़ने का मौका दिया
आपके नेतृत्व में टीम ने कई कीर्तिमान छुये
बगैर लागलपेट के कहुँ तो हम सही रूप में diversify हुए
आपके जाने के निर्णय से हम अभी उभर भी नहीं पाये थे 
और विदा का समय आ गया
अब बस और क्या कहुँ अंत में अपनी ही एक कविता की 
चार लाइने याद आ रहीं हैं,,,,,,

आदमी कुछ भी नहीं
उसका पता है वह घड़ी

जिसमें है बीता वक्त उसका
हमे तो बस यह चाहिये
अविरत चली इस श्रंखला की
हम बने सुंदर कड़ी

पंछी नहीं टिकता वहाँ

उड़ना जहाँ वह सीखता है
पर जाता नहीं है वह अकेला
साथ उसके आसमाँ है
अब तो बस यह देखना है
कितना वो इसमें जोड़ता है
अगली कड़ी का आसमाँ

सुंदर वो कितना छोड़ता है

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आपकी टिप्पणी और उत्साह वर्धन के लिये हार्दिक आभार....