Thursday, December 17, 2009

राम मेरा भाई तेरे राम से...

राम मेरा भाई तेरे राम से
इतना यार झगड़ता क्यों है
मेरे राम मुझे तारेंगें
तारें तुझे तेरे रघुवीर
सहज-सरल सी बात है लेकिन
तू फ़िर भी नहीं समझता क्यूँ है
राम मेरा भाई तेरे राम से....

राग-द्वेष अपने अंतर् में
कहाँ राम को भाते हैं
मन को करते दुखी
देह को रोग नया दे जाते हैं
इन्हें हराकर राम को अपने
तू प्रसन्न नहीं करता क्यूँ है
राम मेरा भाई तेरे राम से....

धर्म-अधर्म और सत्य-असत्य का
युद्ध यहाँ कोई नया नहीं
दिया कृष्ण ने अर्जुन को वह
ज्ञान अभी तक मरा नहीं
निर्भय बन इन संघर्षों से
तू फ़िर इतना डरता क्यूँ है
राम मेरा भाई तेरे राम से....

8 comments:

  1. वाह भाई बहुत बढ़िया बात कही आपने कविता के माध्यम से..अच्छा लगा..धन्यवाद

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  2. bhavnao ko vyakt karna aour RAAM ko saath lekar likhana, vakai..abhootpoorva he ritesh bhai.

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  3. वाह भाई बहुत बढ़िया बात कही आपने कविता के माध्यम से..अच्छा लगा..धन्यवाद

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  4. दिया कृष्ण ने अर्जुन को वह
    ज्ञान अभी तक मरा नहीं
    Reetesh it was a very +ive thinking.
    keep it up.
    Jaya

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  5. bhai reetash
    namaskaar. me bhi tumhari mitti ka banda hu ,kripya mere blog ko bhi dekhe ,opyadav32@yahoo.com,blogspot.com

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  6. सुन्दर चिंतन...सुन्दर व्यक्तित्व...सुन्दर प्रस्तुति... बधाई!

    अमृत-कलश से अमृत ही तो निकलता है...इसे निकालते रहें यूँ ही!

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आपकी टिप्पणी और उत्साह वर्धन के लिये हार्दिक आभार....