लकीरों को गाढ़ा जख्मों को हरा रखिये
चुनाव आगे भी हैं फ़ासलों को जिंदा रखिये
चुनाव आगे भी हैं फ़ासलों को जिंदा रखिये
मर्ज़ की चर्चा मे कोसा जाता है एक मरीज हर बार
खुद को इस गुफ़्तगू से जरा दूर रखिये
ये नफ़रतें किसी की हुई हैं जो तुम्हारी होंगी
ऐसे हर जज़्बात से तौबा रखिये
तुम्हें अकेला किया जायेगा अपनों के बीच
सब्र से दोस्ती और हौसला रखिये
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