तुम्हारे विरह में कवि बन गया हूँ
ठ्साठ्स भरी कवि-रेल में ठ्स गया हूँ
उत्साहित हूँ कवि स्वागत से मैं भी
और मन्त्रमुग्ध हूँ ऐसी कवितागिरी पर
तुमसे विरह पर अकेला नहीं हूँ
साथ भैया-भाभी के मैं चल पड़ा हूँ
दीपक की ज्योति से, भाभी की रोटी से,
ठ्साठ्स भरी कवि-रेल में ठ्स गया हूँ
उत्साहित हूँ कवि स्वागत से मैं भी
और मन्त्रमुग्ध हूँ ऐसी कवितागिरी पर
तुमसे विरह पर अकेला नहीं हूँ
साथ भैया-भाभी के मैं चल पड़ा हूँ
दीपक की ज्योति से, भाभी की रोटी से,
बातों के मोती से खिलखिला गया हूँ
पाकर तुम्हें सब भूले हैं मुझको
सब भूले हैं मुझको मैं भूला हूँ मुझको
ऐसे में स्वयं को फिर गढ़ने चला हूँ
कायल हूँ तुम्हारे सहज कर्तव्यबोध का मैं
और सहज भाव से सब तुम्हारे हुए हैं
न तुमको पड़ा किसी को अपना बनाना
कवि-रेल में हूँ पर तुम्हारी कमी है
साथ में तुम्हारे सफ़र होगा सुंदरपाकर तुम्हें सब भूले हैं मुझको
सब भूले हैं मुझको मैं भूला हूँ मुझको
ऐसे में स्वयं को फिर गढ़ने चला हूँ
कायल हूँ तुम्हारे सहज कर्तव्यबोध का मैं
और सहज भाव से सब तुम्हारे हुए हैं
न तुमको पड़ा किसी को अपना बनाना
कवि-रेल में हूँ पर तुम्हारी कमी है
और यह सिलसिला भी अविरत चल सकेगा
बढ़िया है! कवि गण की रेल-पेल में ठेल दो खुद को खेल-खेल में।
ReplyDeleteसही है, खीचें रहिये. बधाई.
ReplyDelete--समीर
ईश्वर करे कवि रेल में शीघ्र ही मन पसंद हम सफर आपकी बगल में आ बैठे।
ReplyDeleteवाह रितेश जी,
ReplyDeleteक्या कविता गढ़ी,
जब आ ही गए है,कवि-रेल मे,
तो भावों का यूं ही उठाएं आनंद,
अभिव्यक्ति की सहज क्रिया मे,
जन्मेंगी काव्य लहरियां अनंत,
संभव है,मिल जाए कोई,
चले जो जीवन राह में संग.
ब्लाग जगत में आपका स्वागत....आशा है, निकट भविष्य में और भी सुंदर काव्य सोपान प्राप्त करेंगे.
-श्रीमति रेणू आहूजा.
...तुम्हारे विरह में कवि बन गया हूँ ।...
ReplyDeleteऔर जब मिल जाएंगे तब भी कविताई - ब्लॉगाई न छोड़ना भइये.
, भाभी की रोटी से, बातों के मोती से खिलखिला गया हूँ ।
ReplyDeleteपाकर तुम्हें सब भूले हैं मुझको ।
भैय्ये. विरह में रोटियां ज्यादा मत तोड़ना, वरना फिर लोग चाह कर भी तुम्हें भूलेन्गे नहीं