जीवन कठिन डगर है
जो साँसें नहीं हैं गहरी
कैसे प्रभु मिलेगें
मन जो रहेगा लहरी
~~~~~~~~~~
मैनें धर्म को अधर्म के साथ
चुपचाप खड़े देखा है
मैं अधर्म की अट्टाहस से नहीं
धर्म की खामोशी से हैरान हूँ
~~~~~~~~~~
जहाँ छोड़ रख्खा हो उजाला
सबने भरोसे सूर्य के
वहाँ जलता हुआ एक दीप भी
किसी सूरज से कम नहीं
जो साँसें नहीं हैं गहरी
कैसे प्रभु मिलेगें
मन जो रहेगा लहरी
~~~~~~~~~~
मैनें धर्म को अधर्म के साथ
चुपचाप खड़े देखा है
मैं अधर्म की अट्टाहस से नहीं
धर्म की खामोशी से हैरान हूँ
~~~~~~~~~~
जहाँ छोड़ रख्खा हो उजाला
सबने भरोसे सूर्य के
वहाँ जलता हुआ एक दीप भी
किसी सूरज से कम नहीं
जीवन कठिन डगर है
ReplyDeleteजो साँसें नहीं हैं गहरी
कैसे प्रभु मिलेगें
मन जो रहेगा लहरी !!
bhaut khoob likha hai bhai
भाई रीतेश जी,
ReplyDeleteटू गुड बात हो गई ये तो. एक एक क्षणिका बार बार पढी.. सबसे अच्छी ये लगी ..
मैनें धर्म को अधर्म के साथ
चुपचाप खड़े देखा है
मैं अधर्म के अट्टाहस से नहीं
धर्म की खामोशी से हैरान हूँ
पर बाकी भी बहुत बढ़िया लगीं, आशा है की आगे भी आपके द्वारा ऐसी सुंदर कृतियों का सृजन होता रहेगा.,.
जीवन की सच्चाईयों को प्रतिविम्बित करती सुंदर क्षणिकाएँ !
ReplyDeleteभाई अमिताभ, अनुभव और रवीन्द्र जी,
ReplyDeleteआपकी टिप्पणी और प्रोत्साहन के लिये हार्दिक आभार....धन्यवाद
रीतेश
रीतेश जी पहली बार आज आपकी ब्लॉग पर आया... बहुत अच्छा लिखते हैं आप. कई सारे पोस्ट पढ़ डाले... बुकमार्क कर लिया है बाकी के लिए. धन्यवाद ... इतनी अच्छी रचनाओ के लिए.
ReplyDeleteReetesh Bhai
ReplyDeleteBhoot hi saral bhasha main apne sacchai bayan ki hai.
App wakai main badhai ke patra hain.
जीवन कठिन डगर है
ReplyDeleteजो साँसें नहीं हैं गहरी
कैसे प्रभु मिलेगें
मन जो रहेगा लहरी !!
"wah jvab nahee"
regards