Monday, February 04, 2008

कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग...

हे केशव तुमने ज्ञान,
कर्म और भक्तियोग समझाकर
अर्जुन का विषाद हर लिया था
पर इस कलयुग में
तुम्हारी कोई जरूरत नहीं
निज स्वार्थ में डूबे पार्थों को
यहाँ कोई विषाद नहीं
इस युग में तुम्हारा कर्मयोग
अब सैनिक नहीं पैदा करता
नाई, पंडित और शिक्षक में
यह क्यों ओज नहीं भरता
भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ़
यह क्यों टंकार नहीं करता
जनता की आहत भावनाओं का
हवाई सर्वेक्षण कर रहे नेता
कर्मयोग को पीछे छोड़
ज्ञानयोग में गोते खा रहें हैं
और भक्तियोग से जनता को
आपस में लड़ा रहें हैं

2 comments:

  1. सोचनीय है।
    जो स्वस्थ है और जिसे कर्म करना चाहिये वह भक्ति कर रहा है।
    जिन्हैं भक्ति करनी चाहिये, वो कर्म ज्ञान में चिपके हैं।
    जिसे ज्ञान बाँटना चहिये, वो स्वार्थी कर्म में लिप्त है।

    इन सबका तो अल्लाह मालिक।

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  2. कर्म योग, भक्ति योग और ग्यान योग की इस आधुनिक विशलेषण काव्यात्मकता निशचित रूप से सराहनीय और प्रंशसनीय है.

    -रेणू

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आपकी टिप्पणी और उत्साह वर्धन के लिये हार्दिक आभार....