नालिश तने की कि साखें साथ नहीं देतीं मेरा
सुनो मोहम्मद इस पेड़ की साखों का बिखरना तय है
डगर कठिन है कविताओं की मेरे दोस्त
यह रास्ता आम नहीं दीवाने खास है
क्यारियों के सूखने पर क्यों उजाड़ते हो उपवन
बदलो क्यारियों को गुलज़ार फ़िर है गुलशन
यहाँ दिये न जलाओ मेरे दोस्त
इस महफ़िल में सभी ने अंधेरों से दोस्ती कर रख्खी है
खिलकर महकाऊँ जहाँ को यह तमन्ना है एक कली की
भोंरा कोई कमबख्त मगर गुनगुनाता नहीं मिलता
सुनकर शायरों को लिखें हैं ये शेर मैंने
ये लेखनी यह लिखावट मेरी नहीं मुनब्बर
हम तो तेरे जैसे शायरों की शायरी पर फ़िदा हुए हैं
*नालिश= आरोप, शिकायत करना
Monday, October 30, 2006
Thursday, October 26, 2006
जीवन गुलशन कर लीजिये.....
हर जीत मुझे इतना क्यूँ थका देती है
क्यूँ जीत में भी सुकून नहीं मिलता
खुद से रुबरु हो लीजिये
खुद से ही आँखे चुराने में क्या रख्खा है
तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो
अकेले फ़ूल से उपवन नहीं बना करते
सात रंगों के साथ से बनता है इन्द्र्धनुष
जीवन गुलशन कर लीजिये
इस बेखुदी में क्या रख्खा है
सहर से रात हो जायेगी
हालते बयाँ बतों से फ़िर भी न हो पायेगी
कविताओं में ही कुछ कह दीजिये
यूँ बातों में क्या रख्खा है
*बेखुदी=बेहोशी
क्यूँ जीत में भी सुकून नहीं मिलता
खुद से रुबरु हो लीजिये
खुद से ही आँखे चुराने में क्या रख्खा है
तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो
अकेले फ़ूल से उपवन नहीं बना करते
सात रंगों के साथ से बनता है इन्द्र्धनुष
जीवन गुलशन कर लीजिये
इस बेखुदी में क्या रख्खा है
सहर से रात हो जायेगी
हालते बयाँ बतों से फ़िर भी न हो पायेगी
कविताओं में ही कुछ कह दीजिये
यूँ बातों में क्या रख्खा है
*बेखुदी=बेहोशी
Sunday, October 22, 2006
दीवाली मनाई.....
दिन धनतेरस भाभी ने
घर-द्वार पर रंगोली सजाई
स्वागत है दीवाली बधाई हो बधाई
दिन दीवाली भाभी ने
लड्डू, पाक और मठरी बनाई
स्वागत है दीवाली बधाई हो बधाई
दिन दीवाली मित्रों ने
गीत-संगीत से घर की रौनक
बढ़ाई और हमने ढ़ोलक बजाई
स्वागत है दीवाली बधाई हो बधाई
रात दीवाली हुआ लक्ष्मी पूजन
और प्रज्जवलित दीपों से ग्रह-हस्ती जगमगाई
स्वागत है दीवाली बधाई हो बधाई
रोशन दिये सा रोशन बने मन
कामना कुछ ऎसी हमने जगाई
स्वागत है दीवाली बधाई हो बधाई
घर-द्वार पर रंगोली सजाई
स्वागत है दीवाली बधाई हो बधाई
दिन दीवाली भाभी ने
लड्डू, पाक और मठरी बनाई
स्वागत है दीवाली बधाई हो बधाई
दिन दीवाली मित्रों ने
गीत-संगीत से घर की रौनक
बढ़ाई और हमने ढ़ोलक बजाई
स्वागत है दीवाली बधाई हो बधाई
रात दीवाली हुआ लक्ष्मी पूजन
और प्रज्जवलित दीपों से ग्रह-हस्ती जगमगाई
स्वागत है दीवाली बधाई हो बधाई
रोशन दिये सा रोशन बने मन
कामना कुछ ऎसी हमने जगाई
स्वागत है दीवाली बधाई हो बधाई
Tuesday, October 17, 2006
पापा को कविता भेजी....
नये कवि के रूप में हमें बहुत प्रोत्साहन मिला हेजी
उत्साहित हो हमने पापा को कविता भेजी
कविता पढ़कर पापा बोले बेटा बड़ा आनंद आया है
और तुमने सिर हमारा फ़ख्र से ऊँचा उठाया है
मेंने कहा यह सुंदर बगीचा चाचा और आपने लगाया है
हम तो सिर्फ़ इस बगीचे के फ़ूल हैं
चाची और मम्मी ने मिलकर इसे सींचा है
हम तो सिर्फ़ उनके चरणो की धूल हैं
हमारे छोटे इस उपवन के सबसे सुंदर फ़ूल हैं
अपनी ख़ुशबू से इन्होंने बड़ों को लजाया है
बड़ों की क्या बात कहें वे इस मधुवन के सशक्त प्रहरी हैं
उनकी छाया में हर फ़ूल उन्मुक्त खिलखिलाया है
ईश्वर हमेशा इस बगीचे पर मेहरबान हुए हैं
जीवन के हर मौसमी चिट्ठे हमने यहीं बुने हैं
हम तो सिर्फ़ छोटों और बड़ों के बीच की कड़ी बने हैं
तमन्ना है कविता हमें बेहतर इंसान बनाये
गर चले अकेले तो क्या चले हैं हम
मिटा गिले कुछ यूँ चलें की कारवाँ बने
उत्साहित हो हमने पापा को कविता भेजी
कविता पढ़कर पापा बोले बेटा बड़ा आनंद आया है
और तुमने सिर हमारा फ़ख्र से ऊँचा उठाया है
मेंने कहा यह सुंदर बगीचा चाचा और आपने लगाया है
हम तो सिर्फ़ इस बगीचे के फ़ूल हैं
चाची और मम्मी ने मिलकर इसे सींचा है
हम तो सिर्फ़ उनके चरणो की धूल हैं
हमारे छोटे इस उपवन के सबसे सुंदर फ़ूल हैं
अपनी ख़ुशबू से इन्होंने बड़ों को लजाया है
बड़ों की क्या बात कहें वे इस मधुवन के सशक्त प्रहरी हैं
उनकी छाया में हर फ़ूल उन्मुक्त खिलखिलाया है
ईश्वर हमेशा इस बगीचे पर मेहरबान हुए हैं
जीवन के हर मौसमी चिट्ठे हमने यहीं बुने हैं
हम तो सिर्फ़ छोटों और बड़ों के बीच की कड़ी बने हैं
तमन्ना है कविता हमें बेहतर इंसान बनाये
गर चले अकेले तो क्या चले हैं हम
मिटा गिले कुछ यूँ चलें की कारवाँ बने
Saturday, October 14, 2006
इसमें क्या कठिनाई....
कौन जान सका है यारों सागर की गहराई
गहरा उतरो द्रवित ह्रदय में इसमें क्या कठिनाई
संभव नहीं की दूर गगन में पंछी बन उड़ जाऊँ
उन्नत राष्ट्र के स्वप्न में विचरो इसमें क्या कठिनाई
कौन जान सका है यारों नील गगन ऊँचाई
जाँनू वीर जवानो को मैं इसमें क्या कठिनाई
किसने जाना भार धरा का जो सहती है भार सभी का
माँ का वंदन कर लो यारों इसमें क्या कठिनाई
गहरा उतरो द्रवित ह्रदय में इसमें क्या कठिनाई
संभव नहीं की दूर गगन में पंछी बन उड़ जाऊँ
उन्नत राष्ट्र के स्वप्न में विचरो इसमें क्या कठिनाई
कौन जान सका है यारों नील गगन ऊँचाई
जाँनू वीर जवानो को मैं इसमें क्या कठिनाई
किसने जाना भार धरा का जो सहती है भार सभी का
माँ का वंदन कर लो यारों इसमें क्या कठिनाई
Wednesday, October 11, 2006
हम....
चाहत दिलों में फ़ूलों की रखकर
अक्सर ही काँटे क्यों बोते हैं हम
रंगों-सुगंधों में नित-नित उलझकर
याद तीरथ बुढ़ापे में करते हैं हम
चाहत बहू हो तन-मन की सुदंर
क्यों संस्कार नहीं बेटी को देते हैं हम
नालिश की सच्चे लोग मिलते नहीं
कत्ले अच्छाई हिफ़ाजत से करते हैं हम
नेह, न्याय का वरण करें और जानें पीर पराई
स्वयं को इंसान अगर कहते हैं हम
*नालिश= आरोप, शिकायत करना
अक्सर ही काँटे क्यों बोते हैं हम
रंगों-सुगंधों में नित-नित उलझकर
याद तीरथ बुढ़ापे में करते हैं हम
चाहत बहू हो तन-मन की सुदंर
क्यों संस्कार नहीं बेटी को देते हैं हम
नालिश की सच्चे लोग मिलते नहीं
कत्ले अच्छाई हिफ़ाजत से करते हैं हम
नेह, न्याय का वरण करें और जानें पीर पराई
स्वयं को इंसान अगर कहते हैं हम
*नालिश= आरोप, शिकायत करना
Thursday, October 05, 2006
मृत्युदंड....
न्यायपालिका ने अफज़ल को
संसद पर हमले की
साजिश में दोषी पाया है
न्याय स्वरूप मृत्युदंड का
फ़ेसला सुनाया है
लेकिन कुछ लोग
मृत्युदंड को अमानवीय पाते हैं
यारों ऎसे दंड हमें भी
कभी नहीं भाते है
पर डर के बिना इंसान
कभी-कभी हैवान बन जाते हैं
साँप भी अपनी रक्षा
के लिये सिर्फ़ फ़ुफ़कारता है
पर कभी-कभी काटकर
अपने इस विकल्प की याद दिलाता है
संसद पर हमला है भारतीय लोकतंत्र पर घात
इसलिये अफज़ल तुम नहीं हो दया के पात्र
संसद पर हमले की
साजिश में दोषी पाया है
न्याय स्वरूप मृत्युदंड का
फ़ेसला सुनाया है
लेकिन कुछ लोग
मृत्युदंड को अमानवीय पाते हैं
यारों ऎसे दंड हमें भी
कभी नहीं भाते है
पर डर के बिना इंसान
कभी-कभी हैवान बन जाते हैं
साँप भी अपनी रक्षा
के लिये सिर्फ़ फ़ुफ़कारता है
पर कभी-कभी काटकर
अपने इस विकल्प की याद दिलाता है
संसद पर हमला है भारतीय लोकतंत्र पर घात
इसलिये अफज़ल तुम नहीं हो दया के पात्र
Wednesday, October 04, 2006
गाँधी यूँ ही मरते रहेंगे ......
"देदी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल" जैसे
तराने गाँधी की शख्सियत को
जीवंत कर देते हैं
फ़िर सोचता हूँ ये तराने
न होते तो क्या होता
नहीं होता दिमाग में कुछ देर के
लिये होने वाला केमिकल लोचा
नहीं याद आते गाँधी
उनकी जयंती पर भी
नहीं जागतीं पंद्रह अगस्त के दिन भी
वतन पर मर मिटने की भावनाएँ
देश इन्हें देने वालों का
सदा के लिये ऋणी हुआ है
लेकिन अफ़सोस कि हमने
उन्हें आज भुला दिया है
"सोवे गोरी का यार बलम तरसे"
देने वाले दादा साहब फ़ालके पाते हैं
और "मेरे देश की धरती सोना उगले"
देने वाले मनोज कुमार भुला दिये जाते हैं
जब-जब हम बुराई को सम्मानित
और अच्छाई की उपेक्षा करते रहेंगे
हमारे समाज के गाँधी
बार-बार यूँ ही मरते रहेंगे
तराने गाँधी की शख्सियत को
जीवंत कर देते हैं
फ़िर सोचता हूँ ये तराने
न होते तो क्या होता
नहीं होता दिमाग में कुछ देर के
लिये होने वाला केमिकल लोचा
नहीं याद आते गाँधी
उनकी जयंती पर भी
नहीं जागतीं पंद्रह अगस्त के दिन भी
वतन पर मर मिटने की भावनाएँ
देश इन्हें देने वालों का
सदा के लिये ऋणी हुआ है
लेकिन अफ़सोस कि हमने
उन्हें आज भुला दिया है
"सोवे गोरी का यार बलम तरसे"
देने वाले दादा साहब फ़ालके पाते हैं
और "मेरे देश की धरती सोना उगले"
देने वाले मनोज कुमार भुला दिये जाते हैं
जब-जब हम बुराई को सम्मानित
और अच्छाई की उपेक्षा करते रहेंगे
हमारे समाज के गाँधी
बार-बार यूँ ही मरते रहेंगे
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