Saturday, November 11, 2006

ताकि बन सके वो एक बेहतर इंसान.....

नौकर कहता है सेठ बड़े दयालु हैं
हर साल दिवाली पर मुझे नये कपड़े दिलाते हैं

अरे भाई मैं भी उनका बड़ा वफ़ादार नौकर हूँ
दो पीढ़ी से यहाँ काम कर रहा हूँ
सेठ चाहता है नौकर को केवल नौकर की तरह
और नौकर चाहता है सेठ को केवल सेठ की तरह
पर नहीं चाहते दोनों एक दूसरे को इंसान की तरह
अगर चाहते तो नौकर दो पीढ़ी से नौकर नहीं रहता
जब हम चाहते हैं इंसान को प्रकृति की तरह

तब करतें हैं अपनी भावनाओं की तरह उसकी भावनाओं का सम्मान
तब करतें हैं उससे ऎसा व्यवहार जैसा हमें है स्वयं के लिये पसंद
और प्रकृति की तरह देतें हैं उसे समान अवसर
ताकि बन सके वो एक बेहतर इंसान
जैसे शीतलता पसंद चंद्रमा सबको शीतलता देता है
जैसे सूरज के होते हुए भी रौशन रहता है दिया
 

2 comments:

  1. अच्छी कविता है.आपकी कुछ पुरानी कवितायँ भी पढीं."पापा को---" खास पसँद आई. शुभकामनाएँ.

    ReplyDelete
  2. रचना जी,

    जानकर खुशी हुई की आपको कविता अच्छी लगी ।
    ऎसा ही स्नेह बनाये रखें ।

    धन्यवाद !!
    रीतेश गुप्ता

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी और उत्साह वर्धन के लिये हार्दिक आभार....