Sunday, November 05, 2006

मन करता कुछ सृजन करुँ....

जब दिनकर और निराला देखूँ
मन करता कुछ सृजन करुँ
बच्चन-प्रेमचन्द को पढ़कर
मन कहता
मैं भी कुछ गढ़ने का जतन करुँ
सुनकर गीत-प्रदीप के भाई
मन करता कुछ भजन करुँ
बुंदेलों से सुनी कहानी झाँसी वाली रानी की
सुनकर झाँसी की गाथायें
मन कहता की वीर बनूँ
वीर जवान कभी नहीं मरते
वो शहीद हो जाते हैं
सुनकर इनकी अमर कहानी
मन कहता की अमर बनूँ
सुनी कहानी पापा से जब गाँधी और जवाहर की

मेंने जाना नेताओं से नेता कैसे होते हैं
जब-जब देखूँ इनका जीवन
मन करता लोकनायक बनूँ

2 comments:

  1. आप ब्लोगर तो बन ही गए है. कविता भी अच्छी खासी कर लेते है. बाकि कि मनोकामनाएं भी जल्दी से पुरी हो जाएगी हमारी शुभकामनाएं.

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  2. संजय भाई,

    आपकी शुभकामनाओं का ह्रदय से धन्यवाद !!

    रीतेश गुप्ता

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आपकी टिप्पणी और उत्साह वर्धन के लिये हार्दिक आभार....