जब दिनकर और निराला देखूँ
मन करता कुछ सृजन करुँ
बच्चन-प्रेमचन्द को पढ़कर मन कहता
मैं भी कुछ गढ़ने का जतन करुँ
सुनकर गीत-प्रदीप के भाई
मन करता कुछ भजन करुँ
बुंदेलों से सुनी कहानी झाँसी वाली रानी की
सुनकर झाँसी की गाथायें
मन कहता की वीर बनूँ
वीर जवान कभी नहीं मरते
वो शहीद हो जाते हैं
सुनकर इनकी अमर कहानी
मन कहता की अमर बनूँ
सुनी कहानी पापा से जब गाँधी और जवाहर की
मेंने जाना नेताओं से नेता कैसे होते हैं
जब-जब देखूँ इनका जीवन
मन करता लोकनायक बनूँ
Sunday, November 05, 2006
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आप ब्लोगर तो बन ही गए है. कविता भी अच्छी खासी कर लेते है. बाकि कि मनोकामनाएं भी जल्दी से पुरी हो जाएगी हमारी शुभकामनाएं.
ReplyDeleteसंजय भाई,
ReplyDeleteआपकी शुभकामनाओं का ह्रदय से धन्यवाद !!
रीतेश गुप्ता