जब दो भावनाएँ मिली होंगी ।
फ़िर कुछ देर संग आपके चली होगी ।
आपने मेरी वो कविता पढ़ी होगी ।
शब्दों की आँखमिचोली में है कविता ।
भावनाएँ विचारों को ले उड़ी होंगी ।
कुछ ऐसे ही कविता बनी होगी ।
ऐसे ही नहीं मिटता है अंधेरा ।
रात भर रोशनी तिमिर से लड़ी होगी ।
सुबह फ़िर गुनगुनाती सबको मिली होगी ।
कविताई उपेक्षा या तारीफ़ की गुलाम नहीं ।
फ़िर भी जिन्हें दाद रेणू मिली होगी ।
उनकी कविता खिलकर फ़िर खिली होगी ।
श्रीमति रेणू आहूजा (http://kavyagagan.blogspot.com/ ) को समर्पित .....
Saturday, September 09, 2006
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नमस्ते रीतेश जी,
ReplyDeleteआपने तो हद ही कर दी,
काव्य के भक्तगण है,
आप जैसे नवोदित लोग ही,
नव अंकुरों से खिलता उपवन
नव-भावों को करें नमन,
हमने इसी श्रंखला में
प्रशंसा नवकाव्य की कर दी,
क्या पता था आभार प्राक्ट्य में
कविता हम पर ही गढ़ दी,
बंधु सत्य इतना ही,
धन्य काव्य की भावना,
और धन्य समर्पित कवि.
-रेणू.
सत्य यह भी की हमें आपकी टिप्पणी का इंतजार था ।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद !!!
रीतेश गुप्ता
हमें क्या पता था आपने ऐसी कविता रची होगी,
ReplyDeleteअगर रची होगी तो हमने क्या पूरे ज़माने ने पढी होगी।
बहूत खूब। लगे रहो रीतेश भाई ।