Friday, September 08, 2006

कुछ कर लीजिये ना ......

यूँ खाली न रहिये कुछ कर लीजिये ना ।
जाते समय को हाँथो में भर लीजिये ना ।
गर चाहते हो थोड़ा हँसना-हँसाना ।
थोड़ा स्वयं पर भी हँस लीजिये ना ।

याद में वतन की अब रोना नहीं है ।
थोड़ा वतन पर भी मर लीजिये ना ।
गर याद माँ-बाप आयें जो तुमको ।
उठा फ़ोन उनकी खबर लीजिये ना ।
यूँ बातों से उनका जी न भरेगा ।
और उनकी शीतल छाया अमर तो नहीं है ।

मिलिये इस तरह कि, मे बीबी-बच्चों के तर लीजिये ना ।
और याद उनकी आये तो जाने न पाये ।
उनको इस तरह ह्र्दय में मढ़ लीजिये ना ।

9 comments:

  1. बहुत अच्छी कविता है । भावों का स्पष्ट चित्रण बहुत मनोरम है । लिखना ज़ारी रखें ।

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  2. बहुत भावुक कविता है । लिखते रहो ।

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  3. बहुत खूब्सूरत रीतेश भाई!

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  4. रीतेश जी,
    कविता गढ़ने का बहाना आप खोज ही लेते हैं,
    गहरी बात को सरल शब्दों से जोड़ ही देते है,
    मां बाप से लेकर वतन की बंदगी,
    अंजाने में भूल हो जाने की गल्ती,
    सच्चाई भी है यही,सरलता को कविता में भर लिजीए ना.
    कुछ बात कहने में हिचकिचाहट हो,तो कविता कर लीजिए ना.
    -रेणू आहूजा.

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  5. रेणू जी,

    आपके दाद देने की दाद देनी पडेगी ।

    आपकी टिप्पणी की लिये
    सादर धन्यवाद !!!

    रीतेश

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  6. अगर दिल को भाए
    पसंद जो कुछ आए
    तारीफ़ उसकी ज़रा कीजिए ना
    दो चार कसीदे गढ़ लिजिए ना

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  7. ritesh ji
    phir koi kavita kah dijiye
    shabdon men bhaw ko bhar lijiye
    saralta aur sachchai ko
    net ke jariye pure
    sansar men bhar dijiye.

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  8. संजीव जी,

    हम कादम्बिनी के पाठ्क हैं । और वहाँ बिहार के कवियॊं की छोटी-छोटी बहुत सुन्दर कवितायें पढ़ी हैं ।

    आपनॆ अपनी सदभावना से हमें जो आनंद दिया है उसके लिये धन्यवाद !!!!!

    रीतेश गुप्ता

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  9. Hello Ritesh,

    Very beautiful and simple.Gives a boost when in distress.

    Sheetal

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आपकी टिप्पणी और उत्साह वर्धन के लिये हार्दिक आभार....