यूँ खाली न रहिये कुछ कर लीजिये ना ।
जाते समय को हाँथो में भर लीजिये ना ।
गर चाहते हो थोड़ा हँसना-हँसाना ।
थोड़ा स्वयं पर भी हँस लीजिये ना ।
याद में वतन की अब रोना नहीं है ।
थोड़ा वतन पर भी मर लीजिये ना ।
गर याद माँ-बाप आयें जो तुमको ।
उठा फ़ोन उनकी खबर लीजिये ना ।
यूँ बातों से उनका जी न भरेगा ।
और उनकी शीतल छाया अमर तो नहीं है ।
मिलिये इस तरह कि, मे बीबी-बच्चों के तर लीजिये ना ।
और याद उनकी आये तो जाने न पाये ।
उनको इस तरह ह्र्दय में मढ़ लीजिये ना ।
Friday, September 08, 2006
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बहुत अच्छी कविता है । भावों का स्पष्ट चित्रण बहुत मनोरम है । लिखना ज़ारी रखें ।
ReplyDeleteबहुत भावुक कविता है । लिखते रहो ।
ReplyDeleteबहुत खूब्सूरत रीतेश भाई!
ReplyDeleteरीतेश जी,
ReplyDeleteकविता गढ़ने का बहाना आप खोज ही लेते हैं,
गहरी बात को सरल शब्दों से जोड़ ही देते है,
मां बाप से लेकर वतन की बंदगी,
अंजाने में भूल हो जाने की गल्ती,
सच्चाई भी है यही,सरलता को कविता में भर लिजीए ना.
कुछ बात कहने में हिचकिचाहट हो,तो कविता कर लीजिए ना.
-रेणू आहूजा.
रेणू जी,
ReplyDeleteआपके दाद देने की दाद देनी पडेगी ।
आपकी टिप्पणी की लिये
सादर धन्यवाद !!!
रीतेश
अगर दिल को भाए
ReplyDeleteपसंद जो कुछ आए
तारीफ़ उसकी ज़रा कीजिए ना
दो चार कसीदे गढ़ लिजिए ना
ritesh ji
ReplyDeletephir koi kavita kah dijiye
shabdon men bhaw ko bhar lijiye
saralta aur sachchai ko
net ke jariye pure
sansar men bhar dijiye.
संजीव जी,
ReplyDeleteहम कादम्बिनी के पाठ्क हैं । और वहाँ बिहार के कवियॊं की छोटी-छोटी बहुत सुन्दर कवितायें पढ़ी हैं ।
आपनॆ अपनी सदभावना से हमें जो आनंद दिया है उसके लिये धन्यवाद !!!!!
रीतेश गुप्ता
Hello Ritesh,
ReplyDeleteVery beautiful and simple.Gives a boost when in distress.
Sheetal