शब्दों और भावनाओं का
यूँ कचूमर न बनाईये
कृपया इनकी गरिमा को बचाईये
जिसे हम भावनात्मक
मिलना-जुलना कहते हैं
उसे सोशलाइज़ मत बनाईये
यह सोशलाइट क्या बला है
और इनसे समाज का कैसा भला है
बिना कुछ समाज का
भला किये ये सोशल भी हैं
और लाइमलाइट में भी हैं
लगता है आप समझे नहीं
यह सोशलाइट कौन हैं
और कहाँ पाये जाते हैं
मुझे भी नहीं मालूम था
लेकिन ये देर रात वाली
फ़ेशन पार्टियों में पाये जाते हैं
ये समाज को जितना देते हैं
उससे कई गुना अधिक चट कर जाते हैं
आईये ऐसा समाज बनायें
जहाँ सोशलाइट नहीं
सोशल ऐक्टिविस्ट को तरजीह मिले
अब यह मत पूछिये की
यह सोशल ऐक्टिविस्ट कौन है
सोशलाइट को जानते हैं
तो सोशल ऐक्टिविस्ट को
सम्मान से पास में बिठाईये
आज समाज को मेधा पाट्कर जैसे
सोशल ऐक्टिविस्ट की सबसे अधिक जरुरत है
आईये इनके कंधों से कंधा मिलाये
और एक बेहतर भारत बनायें
Wednesday, September 06, 2006
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
अच्छा प्रयास है रीतेश. लिखते रहो
ReplyDeleteराकेश जी,
ReplyDeleteआपके प्रोत्साहन का बहुत धन्यवाद !!!!
रीतेश