निरंतर होते विस्फ़ोंटों से मानवता भी हारी है ।
आज मरा वो अपना ही था अब कल किसकी बारी है ।
भारतीय चिंतन, धर्म सनातन और वसुधा फ़ुलवारी है ।
ऐसा निर्मल जीवन भाई क्या बम का अधिकारी है ।
मरते सपने, मरते अपने और मरती किलकारी है ।
नये समय की नयी समस्या विपदा यह अति भारी है ।
जिस चिंतन पर मैं इठ्लाऊँ पितरों की चितकारी है ।
जोड़ो उसमें अपना कुछ तुम अब आई तुम्हारी बारी है ।
तंत्रों को मजबूत बनाकर दंडित करें दरिंदों को हम ।
पर दोष किसी कौम पर मढ़ना सोच नहीं हितकारी है ।
Sunday, September 24, 2006
Saturday, September 16, 2006
क्यों मैं आनंद से भरता नहीं हूँ ...
क्यों मैं देता हूँ नित नये शूल ।
क्यों कर करता हूँ हर बार वही भूल ।
क्यों मैं आनंद से भरता नहीं हूँ ।
क्यों इस पर कुछ सोचता नहीं हूँ ।
और उत्तर प्रकृति में क्यों खोजता नहीं हूँ ।
आनंद बिना फ़ूल यूँ खुश़बू न उड़ाता ।
आनंद बिना सूरज ऐसे ना दमकता ।
और आनंद बिना होती ना तारों की टोलियाँ ।
इस तरह ही क्यों नहीं आता मुझे जीने में आनंद ।
देने में आनंद और सेवा में आनंद ।
त्याग में आनंद और प्रेम में आनंद ।
खुद भूख में भी माँ आनंद से बच्चों को खिलाती ।
आनंद सिर्फ़ इन्द्रियों के सुख में नहीं है ।
आनंद कोई जीवन की शर्त नहीं है ।
पर इसके बिना जीवन का अर्थ नहीं है |
क्यों कर करता हूँ हर बार वही भूल ।
क्यों मैं आनंद से भरता नहीं हूँ ।
क्यों इस पर कुछ सोचता नहीं हूँ ।
और उत्तर प्रकृति में क्यों खोजता नहीं हूँ ।
आनंद बिना फ़ूल यूँ खुश़बू न उड़ाता ।
आनंद बिना सूरज ऐसे ना दमकता ।
और आनंद बिना होती ना तारों की टोलियाँ ।
इस तरह ही क्यों नहीं आता मुझे जीने में आनंद ।
देने में आनंद और सेवा में आनंद ।
त्याग में आनंद और प्रेम में आनंद ।
खुद भूख में भी माँ आनंद से बच्चों को खिलाती ।
आनंद सिर्फ़ इन्द्रियों के सुख में नहीं है ।
आनंद कोई जीवन की शर्त नहीं है ।
पर इसके बिना जीवन का अर्थ नहीं है |
कविता परवान चढ़ेगी ....
एक उभरते कवि ने एक कविता गढ़ी ।
बदले मैं उसे एक प्रतिक्रिया कुछ यूँ मिली ।
कृपया अपनी कविता का स्तर उठाइये ।
और साथ-साथ उसका वजन भी बड़ाइये ।
सम्मान पूर्वक कवि ने उत्तर दिया ।
श्रीमान आपने स्थिति को बिलकुल सही पढ़ा है ।
किन्तु यह कवि कुछ दिनों से ही कविता से जुड़ा है ।
आप काफ़ी समय से कविता के रसपान में जुटे हैं ।
और अभी तो मेरे दूध के दाँत भी नहीं टूटे हैं ।
आपके प्रोत्साहन से कविता सीड़ी दर सीड़ी आगे बढ़ेगी ।
फ़िर कहीं जाकर परवान चढ़ेगी ।
बदले मैं उसे एक प्रतिक्रिया कुछ यूँ मिली ।
कृपया अपनी कविता का स्तर उठाइये ।
और साथ-साथ उसका वजन भी बड़ाइये ।
सम्मान पूर्वक कवि ने उत्तर दिया ।
श्रीमान आपने स्थिति को बिलकुल सही पढ़ा है ।
किन्तु यह कवि कुछ दिनों से ही कविता से जुड़ा है ।
आप काफ़ी समय से कविता के रसपान में जुटे हैं ।
और अभी तो मेरे दूध के दाँत भी नहीं टूटे हैं ।
आपके प्रोत्साहन से कविता सीड़ी दर सीड़ी आगे बढ़ेगी ।
फ़िर कहीं जाकर परवान चढ़ेगी ।
Saturday, September 09, 2006
आपने मेरी वो कविता पढ़ी होगी .....
जब दो भावनाएँ मिली होंगी ।
फ़िर कुछ देर संग आपके चली होगी ।
आपने मेरी वो कविता पढ़ी होगी ।
शब्दों की आँखमिचोली में है कविता ।
भावनाएँ विचारों को ले उड़ी होंगी ।
कुछ ऐसे ही कविता बनी होगी ।
ऐसे ही नहीं मिटता है अंधेरा ।
रात भर रोशनी तिमिर से लड़ी होगी ।
सुबह फ़िर गुनगुनाती सबको मिली होगी ।
कविताई उपेक्षा या तारीफ़ की गुलाम नहीं ।
फ़िर भी जिन्हें दाद रेणू मिली होगी ।
उनकी कविता खिलकर फ़िर खिली होगी ।
श्रीमति रेणू आहूजा (http://kavyagagan.blogspot.com/ ) को समर्पित .....
फ़िर कुछ देर संग आपके चली होगी ।
आपने मेरी वो कविता पढ़ी होगी ।
शब्दों की आँखमिचोली में है कविता ।
भावनाएँ विचारों को ले उड़ी होंगी ।
कुछ ऐसे ही कविता बनी होगी ।
ऐसे ही नहीं मिटता है अंधेरा ।
रात भर रोशनी तिमिर से लड़ी होगी ।
सुबह फ़िर गुनगुनाती सबको मिली होगी ।
कविताई उपेक्षा या तारीफ़ की गुलाम नहीं ।
फ़िर भी जिन्हें दाद रेणू मिली होगी ।
उनकी कविता खिलकर फ़िर खिली होगी ।
श्रीमति रेणू आहूजा (http://kavyagagan.blogspot.com/ ) को समर्पित .....
Friday, September 08, 2006
कुछ कर लीजिये ना ......
यूँ खाली न रहिये कुछ कर लीजिये ना ।
जाते समय को हाँथो में भर लीजिये ना ।
गर चाहते हो थोड़ा हँसना-हँसाना ।
थोड़ा स्वयं पर भी हँस लीजिये ना ।
याद में वतन की अब रोना नहीं है ।
थोड़ा वतन पर भी मर लीजिये ना ।
गर याद माँ-बाप आयें जो तुमको ।
उठा फ़ोन उनकी खबर लीजिये ना ।
यूँ बातों से उनका जी न भरेगा ।
और उनकी शीतल छाया अमर तो नहीं है ।
मिलिये इस तरह कि, मे बीबी-बच्चों के तर लीजिये ना ।
और याद उनकी आये तो जाने न पाये ।
उनको इस तरह ह्र्दय में मढ़ लीजिये ना ।
जाते समय को हाँथो में भर लीजिये ना ।
गर चाहते हो थोड़ा हँसना-हँसाना ।
थोड़ा स्वयं पर भी हँस लीजिये ना ।
याद में वतन की अब रोना नहीं है ।
थोड़ा वतन पर भी मर लीजिये ना ।
गर याद माँ-बाप आयें जो तुमको ।
उठा फ़ोन उनकी खबर लीजिये ना ।
यूँ बातों से उनका जी न भरेगा ।
और उनकी शीतल छाया अमर तो नहीं है ।
मिलिये इस तरह कि, मे बीबी-बच्चों के तर लीजिये ना ।
और याद उनकी आये तो जाने न पाये ।
उनको इस तरह ह्र्दय में मढ़ लीजिये ना ।
Thursday, September 07, 2006
कवि बन गया हूँ .....
तुम्हारे विरह में कवि बन गया हूँ
ठ्साठ्स भरी कवि-रेल में ठ्स गया हूँ
उत्साहित हूँ कवि स्वागत से मैं भी
और मन्त्रमुग्ध हूँ ऐसी कवितागिरी पर
तुमसे विरह पर अकेला नहीं हूँ
साथ भैया-भाभी के मैं चल पड़ा हूँ
दीपक की ज्योति से, भाभी की रोटी से,
ठ्साठ्स भरी कवि-रेल में ठ्स गया हूँ
उत्साहित हूँ कवि स्वागत से मैं भी
और मन्त्रमुग्ध हूँ ऐसी कवितागिरी पर
तुमसे विरह पर अकेला नहीं हूँ
साथ भैया-भाभी के मैं चल पड़ा हूँ
दीपक की ज्योति से, भाभी की रोटी से,
बातों के मोती से खिलखिला गया हूँ
पाकर तुम्हें सब भूले हैं मुझको
सब भूले हैं मुझको मैं भूला हूँ मुझको
ऐसे में स्वयं को फिर गढ़ने चला हूँ
कायल हूँ तुम्हारे सहज कर्तव्यबोध का मैं
और सहज भाव से सब तुम्हारे हुए हैं
न तुमको पड़ा किसी को अपना बनाना
कवि-रेल में हूँ पर तुम्हारी कमी है
साथ में तुम्हारे सफ़र होगा सुंदरपाकर तुम्हें सब भूले हैं मुझको
सब भूले हैं मुझको मैं भूला हूँ मुझको
ऐसे में स्वयं को फिर गढ़ने चला हूँ
कायल हूँ तुम्हारे सहज कर्तव्यबोध का मैं
और सहज भाव से सब तुम्हारे हुए हैं
न तुमको पड़ा किसी को अपना बनाना
कवि-रेल में हूँ पर तुम्हारी कमी है
और यह सिलसिला भी अविरत चल सकेगा
Wednesday, September 06, 2006
सोशलाइज़, सोशलाइट, और सोशल ऐक्टिविस्ट...
शब्दों और भावनाओं का
यूँ कचूमर न बनाईये
कृपया इनकी गरिमा को बचाईये
जिसे हम भावनात्मक
मिलना-जुलना कहते हैं
उसे सोशलाइज़ मत बनाईये
यह सोशलाइट क्या बला है
और इनसे समाज का कैसा भला है
बिना कुछ समाज का
भला किये ये सोशल भी हैं
और लाइमलाइट में भी हैं
लगता है आप समझे नहीं
यह सोशलाइट कौन हैं
और कहाँ पाये जाते हैं
मुझे भी नहीं मालूम था
लेकिन ये देर रात वाली
फ़ेशन पार्टियों में पाये जाते हैं
ये समाज को जितना देते हैं
उससे कई गुना अधिक चट कर जाते हैं
आईये ऐसा समाज बनायें
जहाँ सोशलाइट नहीं
सोशल ऐक्टिविस्ट को तरजीह मिले
अब यह मत पूछिये की
यह सोशल ऐक्टिविस्ट कौन है
सोशलाइट को जानते हैं
तो सोशल ऐक्टिविस्ट को
सम्मान से पास में बिठाईये
आज समाज को मेधा पाट्कर जैसे
सोशल ऐक्टिविस्ट की सबसे अधिक जरुरत है
आईये इनके कंधों से कंधा मिलाये
और एक बेहतर भारत बनायें
यूँ कचूमर न बनाईये
कृपया इनकी गरिमा को बचाईये
जिसे हम भावनात्मक
मिलना-जुलना कहते हैं
उसे सोशलाइज़ मत बनाईये
यह सोशलाइट क्या बला है
और इनसे समाज का कैसा भला है
बिना कुछ समाज का
भला किये ये सोशल भी हैं
और लाइमलाइट में भी हैं
लगता है आप समझे नहीं
यह सोशलाइट कौन हैं
और कहाँ पाये जाते हैं
मुझे भी नहीं मालूम था
लेकिन ये देर रात वाली
फ़ेशन पार्टियों में पाये जाते हैं
ये समाज को जितना देते हैं
उससे कई गुना अधिक चट कर जाते हैं
आईये ऐसा समाज बनायें
जहाँ सोशलाइट नहीं
सोशल ऐक्टिविस्ट को तरजीह मिले
अब यह मत पूछिये की
यह सोशल ऐक्टिविस्ट कौन है
सोशलाइट को जानते हैं
तो सोशल ऐक्टिविस्ट को
सम्मान से पास में बिठाईये
आज समाज को मेधा पाट्कर जैसे
सोशल ऐक्टिविस्ट की सबसे अधिक जरुरत है
आईये इनके कंधों से कंधा मिलाये
और एक बेहतर भारत बनायें
Tuesday, September 05, 2006
एक मुलाकात...
मेरी मुलाकात उत्तरप्रदेश से आये महान कवि श्री सोम ठाकुर, कवि ऐवम समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सदस्य श्री उदयप्रताप सिंह, और युवा कवि ऐवम कंप्यूटर इंजीनियर भाई अभिनव शुक्ला से न्युजर्सी, अमेरिका में हुइ थी । कविता के रुप में प्रस्तुत है मेरा अनुभव ।......
कविवर सोम से मिलकर वैभव कविता का ज्ञात हुआ ।
बुध्दिवादी व्यवहारिक दुनिया में आत्मा का कैसा ह्रास हुआ ।
उदयप्रताप की बात निराली ऐसा हमने माना है ।
राजनीति की कठिन डगर पर हमने कविता को साधा है ।
समाजवादी इस मशाल का कविता से श्रृंगार हुआ ।
अभिनव की अदभुत क्षमता से युवा शक्ति का भान हुआ ।
विकल्पहीन नहीं हैं हम ऐसा द्रढ़ विश्वास हुआ ।
सूरज की इन किरणों से मिलकर रोशन हुआ तिमिर अन्तर्मन ।
मुझको भी बनना है दीपक ऐसा एक आगाज़ हुआ ।
कविवर सोम से मिलकर वैभव कविता का ज्ञात हुआ ।
बुध्दिवादी व्यवहारिक दुनिया में आत्मा का कैसा ह्रास हुआ ।
उदयप्रताप की बात निराली ऐसा हमने माना है ।
राजनीति की कठिन डगर पर हमने कविता को साधा है ।
समाजवादी इस मशाल का कविता से श्रृंगार हुआ ।
अभिनव की अदभुत क्षमता से युवा शक्ति का भान हुआ ।
विकल्पहीन नहीं हैं हम ऐसा द्रढ़ विश्वास हुआ ।
सूरज की इन किरणों से मिलकर रोशन हुआ तिमिर अन्तर्मन ।
मुझको भी बनना है दीपक ऐसा एक आगाज़ हुआ ।
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