प्रश्न कुछ ऎसे हैं जिनसे
रोज होता रूबरू मैं
कौन हूँ क्या चाहता हूँ
जानने की पीर हूँ मैं
इंतहानों को दिये अब
साल बीते हैं बहुत
अब भी मगर ये स्वप्न में
आकर डराते हैं बहुत
ज्ञान जो निर्भय बनाये
पाने को गंभीर हूँ मैं
कौन हूँ...
राह जैसे सूर्य की
देती है सबको उष्मा
चन्द्र जैसे दे रहा है
छोड़कर सब उष्णता
राह ऎसी जानने को
हो रहा अधीर हूँ मैं
कौन हूँ...
भगवान तूने है बनाया
आसमाँ सबके लिये
इंसान फ़िर क्यूँ चाहता है
बस इसे अपने लिये
इंसानियत जीते हमेशा
ऎसी एक उम्मीद हूँ मैं
कौन हूँ...
शुष्क ना हो ज्ञान
हमको भावना भी चाहिये
इंसान को सम्मान और
कुछ बोल मीठे चाहिये
मन प्रभू ऎसा बनाओ
सब कहें मंजूर हूँ मैं
कौन हूँ...
Thursday, September 25, 2008
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achchi post
ReplyDeleteachchi rachna
बहुत बढिया रचना है।बधाई।
ReplyDeleteभगवान तूने है बनाया
आसमाँ सबके लिये
इंसान फ़िर क्यूँ चाहता है
बस इसे अपने लिये
मन प्रभू ऎसा बनाओ
सब कहें मंजूर हूँ मैं
कौन हूँ...
ati sundar badhaiyaan
ReplyDeleteशुष्क ना हो ज्ञान
हमको भावना भी चाहिये
इंसान को सम्मान और
कुछ बोल मीठे चाहिये
मन प्रभू ऎसा बनाओ
सब कहें मंजूर हूँ मैं
कौन हूँ...
Bahut achhi rachna hai. darshanik andaz ke saath sakaratmak kalpnayen bhi. chalo achhi lagi abhivyakti.
ReplyDeleteबहुत बढिया रचना है
ReplyDeleteSabse bada prashn, " kaun hoon main"?
ReplyDeleteAaiye apne apne tarike se jawab dundhe.
guptasandhya.blogspot.com
प्रश्न कुछ ऎसे हैं जिनसे
ReplyDeleteरोज होता रूबरू मैं
कौन हूँ क्या चाहता हूँ
जानने की पीर हूँ मैं.....बेहद लाजवाब और सुन्दर प्रस्तुति.
बहुत तेजस्वी काविता है
ReplyDeleteभगवान तूने है बनाया
ReplyDeleteआसमाँ सबके लिये
इंसान फ़िर क्यूँ चाहता है
बस इसे अपने लिये
इंसानियत जीते हमेशा
ऎसी एक उम्मीद हूँ मैं
कौन हूँ...
वाह ! क्या कहूँ,आपकी भावपूर्ण रचना ने बाँध लिया.बहुत बहुत बहुत ही सुंदर भाव और अभिव्यक्ति..
Waah...! Aajtak kaun apne aapko samajh paya hai..! Bakhoobee kaha aapne..!
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