Tuesday, July 31, 2007

मुझे जलाने में...

वो इतना जलते हैं
फ़िर भी राख नहीं बनते
मैं सोचकर हैरान हूँ
थोड़ा परेशान हूँ
कितना जलना पड़ता होगा उन्हें
थोड़ा मुझे जलाने में


आजकल नज़र उनकी
हमसे नहीं मिलती
हमे देखते ही वो
रास्ता बदल लेते हैं
मैं सोचकर हैरान हूँ
थोड़ा परेशान हूँ
कितना गिरना पड़ता होगा उन्हें
थोड़ा मुझे गिराने में

पृष्ठभूमि...

आजकल हर छोटी बड़ी बात पर
हो जाता है संघर्ष
बह जाता है खून
पहले की तरह
अब कम ही निकलता है
बातचीत और शान्ति से
समस्याओं का समाधान


आज फ़िर दुर्योधन ठुकरा रहें हैं
कृष्ण का शान्ति संदेश
और बना रहें हैं बंदी
इंसानियत और प्रेम को


धृतराष्ट्र का मन
आज भी यही कह रहा है
मन का बुरा नहीं है
मेरा दुर्योधन
प्रतिभावान दानवीर कर्ण भी
दे रहें हैं अधर्म का साथ
और पितामह निभा रहें हैं
अपनी अंधी निष्ठा


सब मिलकर फ़िर
बना रहें हैं
एक और युद्ध की पृष्ठभूमि
जिसमे मारे जायेगें
कर्ण और दुर्योधन
नहीं बच सकेंगें पितामह
और समय से पहले ही
मारा जायेगा वीर अभिमन्यु

Saturday, July 21, 2007

घुटन होती है मुझे...

आदमखोर शेर को मारने के लिये
गाँव वालों की मेहनत से बने मचान से
बंदूकधारी हाथों को डर से काँपता देखकर
घुटन होती है मुझे


अन्याय की अट्टाहस से
मुकाबले के लिये तैयार निहत्थे लोगों से
मशीनगन लिये पुलिस वाले को यह कहता देखकर
की छोड़ो यार घर जाओ क्यों पंगा लेते हो
घुटन होती है मुझे


अपने कठिन परिश्रम से
कठोर धरती को चीरकर

सभी के लिये भोजन निकालने वाले
किसान को गरीबी से तंग आकर
आत्महत्या करने को मजबूर देखकर
घुटन होती है मुझे


जब नारंगी, नारंगी नहीं लगती
नीबू को शिकायत होती है अपने खट्टा होने से
और सारे फ़लों का स्वाद एकसा होते देखकर
घुटन होती है मुझे


जब समर्थ को उदासीन पाता हूँ
बहुत बड़े पदों पर बहुत छोटे लोगों को देखता हूँ
और जिन्हें इंसानियत का ज्ञान नहीं
उन्हें देश और समाज के प्रति कर्तव्य निभाता देखकर
घुटन होती है मुझे


जब घंटों बैठकर सोचने
और कागद कारे करने के बाद भी
कह नहीं पाता हूँ मन की बात
ऎसी अव्यक्त रह गई भावनाओं की घुटन में
घुटन होती है मुझे

Monday, July 16, 2007

किरदार...

आफ़िस से घर लौटते समय रास्ते में मैंने देखा की सड़क के एक तरफ़ काफ़ी लोग जमा हैं । मालूम हुआ मशहूर फ़िल्म अभिनेत्री नताशा की कार सामने से आते ट्रक से टकरा गई है । इस दुर्घटना में उन्हें गंभीर चोटें आयी हैं और उन्हें नजदीक के अस्पताल ले जाया गया है । घटना से दुखी मैंने अपनी कार को आगे बढ़ाया । उनके अभिनय को पसंद करने के कारण मेरा मन सहज ही उनके बारे में सोच रहा था । वे जीवन के चोथे दशक में थी और पिछले दस वर्षों से उन्होंने कई शानदार किरदार निभाये थे । अपनी फ़िल्मों में वे ज्यादातर एक अच्छी पत्नी और माँ का किरदार किया करतीं थीं । जीवन में आदर्श और सिद्धांत लिये चरित्रों को वो बड़ी सहजता से निभाती थीं । देखकर लोग भूल ही जाते थे की वो अभिनय कर रहीं हैं । इसलिये असल जिन्दगी में भी लोग उन्हें उनके फ़िल्मी चरित्रों जैसा नेक मानते थे । सो़चते हुए घर कब आ गया पता ही नहीं चला । अगले दिन अखबार से पता चला की गाड़ी चलाते वक्त नताशा प्रतिबंधित दवाओं के नशे में थीं । दो साल पहले उनका अपने पति से तलाक हो गया था । उनका इकलौता बेटा जो पाँच साल का है अपने पापा के साथ रहता है । तलाक के वक्त नताशा ने बच्चे को अपने पास रखने में असमर्थता जताई थी । यह सब पढ़कर मैं गहरी सोच में डूब गया । मन कह रहा था नताशा जी ऎसी कैसे हो सकतीं हैं ? सोच रहा था फ़िल्मों के लिये सच्चे और महान किरदार हमारे जीवन से चुराये जा सकतें हैं । परन्तु जीवन में सच्चा इंसान बनने के लिये तो ऊँचे जीवन मूल्यों और संस्कारों की ही जरूरत होती है ।