Saturday, June 02, 2007

गुम हो गया देश कहीं...




इस गुर्जर आंदोलन में
आरक्षण के आवाहन में
इसकी किसको चिंता है
अपने कितने गुजर गये

पटरी सारी उखड़ गई
रेल एक भी चली नहीं
लोगों के इस रेले में
गुम हो गया देश कहीं

कुछ इससे ही खुश हैं
की उनकी ऎसी चलती है
उनके एक इशारे पर

कुछ बसें जला दी जातीं हैं

देश नहीं एक भीड़ हूँ मैं
मैं कुछ भी कर सकता हूँ
दंडित कैसे करोगे मुझको
मैं फ़िर भी बच सकता हूँ

थोड़ा रूककर सोचें हम सब
जिम्मेदारी है यह किसकी
अच्छा होना तो अच्छा है
अब आगे इसके बढ़ना होगा

गर नेता तुम नहीं बने तो
इनसे शासित होना होगा
अपने भविष्य के सपनों में
राष्ट्र को शामिल करना होगा