Sunday, May 25, 2008

कुछ मन के ख्याल...

कितनी लगन से उसने जी होगी जिंदगी
यूँ ही नहीं हँसते हुये यहाँ दम निकलता है


इबादतें वो बड़ी बेमिसाल होतीं हैं
इंसान जब भगवान से आगे निकलता है


जिंदगी में हार को तुम मात न समझो
इंसान ही तो यारों गिरकर संभलता है


पहली नज़र के प्यार से हमको परहेज है
कभी-कभी ही साथ यह लंबा निकलता है


खुशी की देखो गम से हो गई दोस्ती
गम में भी नहीं आँसू यहाँ अब निकलता है

9 comments:

  1. लिखते रहो, शुभकामनाऐं.

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  2. लालाजी और अभिषेक भाई,

    आभार एवं धन्यवाद

    रीतेश गुप्ता

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  3. बहुत सुंदर कविता है। इस में संदेह नहीं कि भावों को बड़े ही सुंदर शब्दों से अभिव्यक्त किए हैं। इन पंक्तियां में जो विचार दिए हैं, लजवाब हैं:-
    'इबादतें, वो बड़ी बेमिसाल होतीं हैं
    इंसान जब भगवान से आगे निकलता है'

    (इस रचना को ग़ज़ल शब्द से संबोधित ना कर 'कविता' कहने के लिए क्षमा चाहता हूं।)
    शुभकामनाओं सहित
    महावीर शर्मा

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  4. बहुत सुंदर कविता है। इस में संदेह नहीं कि भावों को बड़े ही सुंदर शब्दों से अभिव्यक्त किए हैं। इन पंक्तियां में जो विचार दिए हैं, लजवाब हैं:-

    इबादतें, वो बड़ी बेमिसाल होतीं हैं
    इंसान जब भगवान से आगे निकलता है

    (इस रचना को ग़ज़ल शब्द संबोधित ना कर, 'कविता' कहने के लिए क्षमा चाहता हूं।)
    शुभकामनाओं सहित
    महावीर शर्मा

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  5. महावीर जी,

    आपके आशीर्वाद के लिये हार्दिक आभार.
    मुझे तो गज़ल का व्याकरण ही नहीं मालुम. दूसरों के द्बारा लिखी हुई गज़लो को पढ़कर जो मैनें लिखा है वह कुछ गज़ल सा प्रतीत होता है. आगे भी आपका मार्गदर्शन मिलता रहे ऎसी कामना है...धन्यवाद

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  6. gajal kahen ya kavita,
    har roop iska bhavnao se bhara hai.
    Reetesh Bhai apko margdarshan ki koi awasykata nahi, app to kudh hi margdarshak hain.

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  7. सादर ब्लॉगस्ते!

    कृपया निमंत्रण स्वीकारें व अपुन के ब्लॉग सुमित के तडके (गद्य) पर पधारें। "एक पत्र आतंकवादियों के नाम" आपकी अमूल्य टिप्पणी हेतु प्रतीक्षारत है।

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  8. मन को छू गई
    बहुत दिनों बाद ब्लोग खोला
    अच्छा लगा लिखते रहो

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आपकी टिप्पणी और उत्साह वर्धन के लिये हार्दिक आभार....