आदमखोर शेर को मारने के लिये
गाँव वालों की मेहनत से बने मचान से
बंदूकधारी हाथों को डर से काँपता देखकर
घुटन होती है मुझे
अन्याय की अट्टाहस से
मुकाबले के लिये तैयार निहत्थे लोगों से
मशीनगन लिये पुलिस वाले को यह कहता देखकर
की छोड़ो यार घर जाओ क्यों पंगा लेते हो
घुटन होती है मुझे
अपने कठिन परिश्रम से
कठोर धरती को चीरकर
सभी के लिये भोजन निकालने वाले
किसान को गरीबी से तंग आकर
आत्महत्या करने को मजबूर देखकर
घुटन होती है मुझे
जब नारंगी, नारंगी नहीं लगती
नीबू को शिकायत होती है अपने खट्टा होने से
और सारे फ़लों का स्वाद एकसा होते देखकर
घुटन होती है मुझे
जब समर्थ को उदासीन पाता हूँ
बहुत बड़े पदों पर बहुत छोटे लोगों को देखता हूँ
और जिन्हें इंसानियत का ज्ञान नहीं
उन्हें देश और समाज के प्रति कर्तव्य निभाता देखकर
घुटन होती है मुझे
जब घंटों बैठकर सोचने
और कागद कारे करने के बाद भी
कह नहीं पाता हूँ मन की बात
ऎसी अव्यक्त रह गई भावनाओं की घुटन में
घुटन होती है मुझे
Saturday, July 21, 2007
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एक बेहतरीन सामयिक कविता… जिसकी धार लेख की धार से ज्यादा तेज है…॥
ReplyDeleteगुप्ता जी बेहद उम्दा किस्म की कविता है ............
ReplyDeleteरितेश जी,बहुत बढिया रचना है।बहुत बड़ी और खरी बात कहती है आप की रचना-
ReplyDeleteजब समर्थ को उदासीन पाता हूँ
बहुत बड़े पदों पर बहुत छोटे लोगों को देखता हूँ
और जिन्हें इंसानियत का ज्ञान नहीं
उन्हें देश और समाज के प्रति कर्तव्य निभाता देखकर
घुटन होती है मुझे
बढ़िया है रीतेश-लगे रहो.अच्छे भाव लगे...बधाई.
ReplyDeleteअपनी भावनाओं को शब्दों में ढ़ालने का प्रयास कर रहा हूँ....
ReplyDeleteभाई दिब्य, विक्रम, परमजीत जी, और लालाजी,
आप सभी के स्नेह और प्रोत्साहन का हार्दिक धन्यवाद....
बहुत बेहतरीन और मर्म पर चोट करती है आपकी रचना...उम्दा भाव...
ReplyDeleteघुटन की वाजिब वजहें हैं। अच्छी कविता है।
ReplyDeleteGood ghutan ki ghatana.
ReplyDeleteWell expressed.
FA1G0x Your blog is great. Articles is interesting!
ReplyDeletexw4eEc Please write anything else!
ReplyDeleteVupvB0 Nice Article.
ReplyDeleteHello all!
ReplyDeleteactually, that's brilliant. Thank you. I'm going to pass that on to a couple of people.
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