Friday, September 14, 2007

एक अच्छी कविता की नींव...

कुछ देर पहले ही की तो बात है
हर तरफ़ लगा हुआ था मेला
कोई भी नहीं था मेरे अंदर अकेला
मिल रही थी ह्रदय को पर्याप्त वायु
मन आश्वस्थ था
और कान भूल गये थे सन्नाटे की आवाज
फ़िर रूक रूककर आने लगीं गहरी साँसें
रह रहकर आने लगी सन्नाटे की आहट
जैसे जा रहा हो कोई दूर मुझसे
अचानक यह सिलसिला भी बंद हो गया
हर तरफ़ भीड़ थी फ़िर भी
मन बिलकुल अकेला हो गया
तुरंत ही मन बावला हो
ढूँढने लगा अपने संगी-साथी
कुछ ही देर की छ्टपटाहट के बाद
मन रूका और सोचने लगा
किससे कहेगा यह मन
अपने मन की बात
बुध्दिवादी दुनियाँ में
ह्रदय की कविता कौन समझेगा
आजकल किसके पास है
ऎसा धीरज और समय
जो रुकेगा कविता के लिये
एकाएक ही मन
उत्साहित हो चल दिया
चिट्ठों की दुनियाँ में
यहाँ भी सबकुछ प्रिय नहीं मिला
पर मिले प्रियंकर
जिनकी कवितायें बता रहीं थीं
कविताओं के कई आयाम
यहाँ भी कोई फ़ुरसत में नहीं मिला
पर मिले फ़ुरसतिया
जिनके जीवन स्पर्शी संस्मरण
ले गये मुझे साहित्य की गोद में
यहाँ मिली मुझे लालाजी की उड़न तश्तरी
जिसमें बैठते ही मन
भूल गया अपना अकेलापन
यहाँ ही मन मिल सका
एक अदभुत दिव्य से
जो पारखी था शब्दों और भावनाओं का
फ़िर मिला एक गीतकार
जिनके श्रीमुख से प्रस्फ़ुटित हो
निर्मल सरिता से बह रहे थे गीत
इन्हीं सब भावनाओं के बीच
मैंने देखा
मन फ़िर रख रहा था
एक अच्छी कविता की नींव

5 comments:

  1. भाई मेरे, मेरा सौभाग्य जो तुम उड़न तश्तरी में बैठकर अकेलापन भुला पाते हो. बस सफल हो गई उड़न तश्तरी की हर उड़ान. प्रियंकर जी, अनूप शुक्ल जी, दिव्याभ भाई और राकेश भाई जैसे बड़ों से प्रेरित होना स्वभाविक है मगर उनके बीच अपना नाम पा मैं अनुग्रहित हूँ. गौरवांवित हूँ. यह सब तो मेरे गुरुवर हैं जिनसे मैं हर रोज सिखता हूँ.

    बस यही आशा है कि तुम यूँ ही स्नेह बनाये रखो.

    अब जब नींव तैयार है तो रच डालो इसी दौर में कुछ यादगार कवितायें. हम इन्तजार कर रहे हैं पढ़ने को.

    शुभकामनायें और पुनः आभार.

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  2. समीर भाई…
    आपने बहुत छोटा बना दिया मुझे आप तो एक आदर्श हैं जिससे मात्र सिखना ही नहीं होता गुनना भी हो जाता है…।
    रितेश भाई…
    इतनी महत्ता ???
    चलिए मेरी कविता का अंश अगर आपको कुछ देर भी रोक सका है जटिलताओं से तो एक लेखक की मेहनत सफल हुई…
    अगली कविता आपकी कहर ही होगी ऐसा मानता हूँ…। लिखते तो आप बहुत सुंदर हैं पहले से ही हैं।

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  3. बहुत सही कहा है आपने "हर तरफ़ भीड़ थी फ़िर भी
    मन बिलकुल अकेला हो गया"।
    यही आज के समाज का सच है। और ऐसे अकेलेपन में कवि के लिए कविता ही एक सहारा होती है।
    मन को छू लेने वाली एक कविता के लिए बधाई स्वीकारें।

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  4. बड़ों से आशीर्वाद और प्रेरणा पाकर आपने भी बढ़िया रचना दी.
    शुभकामना है कि आने वाले दिनों में यह रचनात्मकता और निखरेगी।
    मुझे बेहतरीन कविताएँ पढ़ने मिलेंगी भाई.

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  5. आपकी कविता बहुत महत्वपूर्ण है। आप बहुत सुंदर लिखते हैं,बस यही आशा है कि यह रचनात्मकता और निखरे...।

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आपकी टिप्पणी और उत्साह वर्धन के लिये हार्दिक आभार....