Friday, January 12, 2007

भारत का वासी हूँ किंतु प्रवासी हूँ....

आज फ़िर सवालों के समक्ष मैं मौन हूँ
सोचता हूँ कहाँ से शुरू करूँ की मैं कौन हूँ
दिल्ली की सड़कों पर चलता
निरंतर काम की तलाश करता
पहले बसने और फ़िर बसाने की चाह लिये
औसत दर्जे का एक युवा अभियंता हूँ
उच्च वर्ग को सबकुछ अपना
कमाया हुआ लगता है
निम्न वर्ग के पास देने के लिये
कुछ नहीं बचता है
मैं मध्य वर्ग का प्रतिनिधि हूँ
यहाँ जद्दोज़हद और हताशा के
बीच वैचारिक संघर्ष भी है
मैं गरीबी को जानता हूँ
और एश्वर्य को मानता हूँ
मुझमे नेतृत्व की प्रबल संभावना है
मध्य वर्ग की अभिलाषाओं और
विरोधाभासों के बीच देश छूटा
आज मैं भारत का वासी हूँ किंतु प्रवासी हूँ
जगह बदल जाने से इंसान नहीं बदलते

एक रिक्शे वाले और बेरोज़गार से
स्वयं को अलग नहीं पाता हूँ
राष्ट्र के प्रति समर्पण और प्रेम

दूरियों से कहाँ रुकता है
आज भी देश मेरे अंदर धड़कता है

19 comments:

  1. रितेशजी,

    बहुत ही भावपूर्ण रचना है आपकी, पढ़कर दर्द हुआ।

    इसी प्रकार लिखते रहें।

    ReplyDelete
  2. "पढ़कर दर्द हुआ।"

    कविराज 'डायक्लोविन प्लस' ले लेना, ठीक हो जाएगा। :)

    कविता सचमुच अच्छी थी।

    ReplyDelete
  3. कविराज और पंडित जी,

    आपकी दोनों की टिप्पणी का बहुत शुक्रिया ।

    कृपया ऎसा ही स्नेय बनाये रखें ।

    रीतेश गुप्ता

    ReplyDelete
  4. bahut khoob.

    jab ek padha-likha rickshaw chalaaneki himmat kar paayega,
    dono ki duniya asaan bana jaayega.

    ReplyDelete
  5. रितेश जी,
    आपकी कविता मार्मिक है...देश की याद आती है न ! काफी दिनो बाद ऐसी सपाट कविता पढ्ने को मिली.
    आपका
    गिरीन्द्र नाथ झा
    www.anubhaw.blogspot.com

    ReplyDelete
  6. रीतेश गुप्त जी, अच्छा लिखा है! ऐसे ही लिखते रहें।

    ReplyDelete
  7. हिमांशु भाई, बुआ जी, झा जी एवं me जी,

    आप सभी की टिप्पणी का हार्दिक धन्यवाद

    रीतेश गुप्ता

    ReplyDelete
  8. "मैं मध्य वर्ग का प्रतिनिधि हूँ
    यहाँ जद्दोज़हद और हताशा के
    बीच वैचारिक संघर्ष भी है"

    मध्य वर्ग और देश प्रेम तथा संघर्ष की सीधी और सरल अभिव्यक्ति है ।

    ReplyDelete
  9. सीमा जी,

    आप हमारे ब्लाग पर आयीं और आपको कविता अच्छी लगी ...बहुत धन्यवाद ॥

    रीतेश गुप्ता

    ReplyDelete
  10. यह पंक्तियाँ विशेषरूप से पसंद आईं-

    आज मैं भारत का वासी हूँ किंतु प्रवासी हूँ
    जगह बदल जाने से इंसान नहीं बदलते
    एक रिक्शे वाले और बेरोज़गार से
    स्वयं को अलग नहीं पाता हूँ

    ReplyDelete
  11. कभी वक्त हो तो http://mypoemsmyemotions.blogspot.com/2007/05/blog-post_3919.html

    पर राय दे

    ReplyDelete
  12. sundar or aache bhav sepuran achi kavita hai

    ReplyDelete
  13. 2yFIta Your blog is great. Articles is interesting!

    ReplyDelete
  14. wTptiK Wonderful blog.

    ReplyDelete
  15. FCfc5t Wonderful blog.

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी और उत्साह वर्धन के लिये हार्दिक आभार....