Tuesday, December 18, 2007

एक और दिन चला गया यूँ ही...

रात हो चुकी थी
दिन भर के थके पंछी
संतुष्ट एवं आनंदमग्न
चहचहा रहे थे अपने घोंसलों में
पेड़-पोधे भी अपार संतोष लिये
सो रहे थे गहरी नींद में
वहीं दूसरी ओर
इंसानों की बस्ती में
छाई हुई थी गहरी उदासी
सब सोच रहे थे
एक और दिन चला गया यूँ ही
बाकी दिनों की ही तरह
भरपूर रोशनी के साथ आया था दिन
साथ में हम भी हुए थे रोशन
पर इतने ही की
जा सकें काम पर
पूर्वाग्रहों में जकड़े
हम ना कर सके
अपने संगियों के
अच्छे कामों की भी तारीफ़

प्रतिस्पर्धा में उलझे
हम ना सुन सके
प्रकृति का गान
नाखुश ही रहे
अपनी छोटी-बड़ी उपलब्धियों पर
ईर्ष्या में फ़से
घुटते रहे दिनभर
रात को जब घर लौटे
तो स्वयं को विचार शून्य पाया
लंबा इंतजार कर रहे बच्चे
लूम पड़े हमपर
निरुत्साहित और उदास
हम ना बन सके बच्चे
अपने बच्चों के लिये

11 comments:

  1. पूर्वाग्रहों में जकड़े नहीं कर सके हम
    अपने संगियों के अच्छे कामों की भी तारीफ़
    प्रतिस्पर्धा में उलझे नहीं सुन सके प्रकृति का गान
    नाखुश ही रहे अपनी छोटी-बड़ी उपलब्धियों पर
    ईर्ष्या में फ़से घुटते रहे दिन भर...
    सच कहा आपने इन चीजों ने हमारी प्राकृतिक खुशी छीन ली है।

    ReplyDelete
  2. सत्य को उजागर किया है इस सुंदर रचना में। बधाई स्वीकारें।

    ReplyDelete
  3. रीतेश
    “कितना अच्छा हो गर
    एक बूढ़ा आदमी अपने बेटों के लिये
    जा सके अपनी जवानी में
    एक पिता अपने बच्चों के लिये
    जा सके अपने बचपन में”

    मैं ऐसा नहीं मानता।
    तुम्हारी ही एक बड़ी अच्छी पुरानी कविता की कुछ पंक्तियां हैं जिन्हें लिखते समय तुम अवश्य ही मानसिक रूप से उस घटना के बीच होगे। ऐसा लगता होगा जैसे शारीरिक रूप से भी सब देख रहे होगे, जब ही तो इतना सजीव चित्र है इन पंक्तियों में।
    “अन्याय की अट्टाहस से
    मुकाबले के लिये तैयार निहत्थे लोगों से
    मशीनगन लिये पुलिस वाले को यह कहता देखकर
    की छोड़ो यार घर जाओ क्यों पंगा लेते हो
    घुटन होती है मुझे”
    मेरे कहने का तातपर्य यह है कि बूढ़ा केवल जवानी में ही नहीं, बचपन में भी चला जाता है। उसका जीवन इन अवस्थाओं से ही तो गुज़रा है। जवान बेटे के साथ जब कभी बैठ कर अपने बीते
    समय के अनुभवों की बातें करता है तो उस समय अनजाने में ही पुराने टाइम ज़ोन में विचरता हुआ मानसिक ऊर्जा को महसूस करता है। इसी प्रकार विचारों के द्वारा टाइम ज़ोन में जाने से ही वह बालक बन कर अपने नन्हे बच्चों से बात करते हुए बच्चे की तरह तुतला कर बातें करने लगता है। बचपन में ही तो पहुंच जाता है। उस समय मानसिक ऊर्जा शारीरिक दुर्बलता पर विराजमान होती है।

    ReplyDelete
  4. हाँ, एक बात भूल गया। रचना बहुत सुंदर और स्तरीय है।

    ReplyDelete
  5. महावीर जी,

    आप बिलकुल ठीक कह रहें हैं । कृपया ऎसे ही हमारा मार्गदर्शन करते रहें । कविता से मैंने वो लाइने हटा ली हैं ।

    हर समय की तरह आपकी स्नेह पूर्ण टिप्पणी का
    धन्यवाद ....

    ReplyDelete
  6. अच्छा लिखा है।

    कितना अच्छा हो अगर हम वतमान में रह सकें। लेकिन फिर ऐसी कविता कौन लिखेगा ? :-)

    ReplyDelete
  7. रीतेश
    मेरा यह अभिप्राय बिल्कुल नहीं था कि इन पंक्तियों को हटा दी जाएं। यह पंक्तियां कवित्व,मौलिक वचारों,भावनाओं और अभिव्यंजना की दृष्टि से बहुत अच्छी थीं। तुम कवि हो, कवि को अपने विचारों को व्यक्त करने की स्वतंत्रता का अधिकार है। यदि तुम पसंद करो तो इन पंक्तियों को फिर से लगा सकते हो।
    टिप्पणियां तो होती ही इस लिए हैं कि अन्य व्यक्ति किसी रचना को स्वयं के मानसिक स्तर पर कैसे देखता है।
    महावीर

    ReplyDelete
  8. आदरणीय महावीर जी,

    आपके कहने की बात नहीं है । यह तो आपका स्नेह है जो आप हमे इतना समय दे रहें हैं । मुझे भी लगा वो पंक्तियाँ सही नहीं लग रहीं हैं । मैं भी अपने उस कथन से पूरी तरह सहमत नहीं हो पा रहा था । कविता को जल्दी ब्लाग पर डालने की अधीरता के कारण में रचना के आत्मविश्लेषण पर समय नहीं दे पाया । वैसे भी मैंने तो अभी लिखना शुरू किया है । में मानता हूँ की लेखन में परिपक्कता और स्थिरता आने में समय लगता है ।

    पुन: धन्यवाद ...

    ReplyDelete
  9. भाई रीतेश ,
    कोई माने या न माने मगर यह सच है की व्यक्ति सीखते -सीखते सीखता है , जीवन की बात हमेशा मृत्यु से शुरू की जाती है , क्योंकि जहाँ समाप्ति की नियति है वहाँ हर कर्म क्षणिक और अपने लिए गढा गया हर अभिप्राय भ्रम होता है ! आपकी कविता नि:संदेह बहुत हीं सुंदर और गंभीर है , बधाईयाँ , इस क्रम को बनाए रखें !

    ReplyDelete
  10. नया वर्ष आप सब के लिए शुभ और मंगलमय हो।
    महावीर शर्मा

    ReplyDelete
  11. रितेश भाई आपको आंग्ल नव वर्ष की शुभकामनाऐं,
    मुझे जानकर खुशी हूई की आप मैं माद्दा है कबूल करने का की आप एक गाँव से हैं,मैं भी आपके पडोस के गाँव भोपाल का हूँ,मैं जब दिल्ली पहूंचा को मुझे बताया गया की मैं एक गाँव से हूँ,मैं CNEB news chhanel मैं म.प्र,छ.ग का संवाददाता हूँ,पहले मेरा लक्ष्य था की मैं भोपाल मैं ही रहूँगा,पर मुझे जिस ढंग से बाईज्जत बेईज्जत किया गया मैंनैं प्रण लिया है कि पलटना है और एक बार फिर साबित करना है की हम आज भी पापा हैं।
    अनुराग अमिताभ
    correspondent
    mp and chhattisgarh
    mb no-919993180805

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी और उत्साह वर्धन के लिये हार्दिक आभार....