Saturday, December 15, 2007

नेता बनाम राजा...

बिन्देश्वरी दुबे शहर के बड़े लोकप्रिय नेता माने जाते थे । उनके कद का कोई दूजा नेता पूरे नगर में ना था । जनता उन्हें गरीबों का मसीहा मानती थी । कालेज में छात्रों के बीच उनकी बड़ी चर्चा हुआ करती थी । राकेश भी उन्हीं छात्रों में एक था । राकेश के दादा स्वर्गीय पन्नालाल जी स्वतंत्रता संग्राम सैनानी थे । इसके कारण उसके मन पर राष्ट्रवादी विचारों का बड़ा प्रभाव था । लोगों से नेता जी की बढ़ाई सुनकर राकेश का मन स्वत: ही उनके व्यक्तित्व से प्रभावित हो रहा था । वह स्वयं भी अपने आपको भविष्य में एक राष्ट्र समर्पित नेता के रूप में देखता था । उसने सोचा दुबे जी इतने बड़े नेता हैं । मुझे उनके सानिध्य में रहकर नेतृत्व के गुर और उनमे आने वाली समस्याओं का अनुभव लेना चाहिये । यह सोचकर राकेश नेता जी के घर पहुँचा । घर के चोकीदार ने रोका और कहा की नेता जी किसी एरे-गेरे से नहीं मिलते । मिलना हो तो महिने में एक दिन जनता दरबार लगता है तब आ जाना मिलवा देंगे । राकेश सोचने लगा ये कैसे नेता हैं । जिन्होंने नेता बनाया उनसे ही महिने में एक बार मिलते हैं । और यह जनता दरबार क्या होता है दुबे जी नेता हैं या कोई राजा । खेर मन में उनसे मिलने की लगन के कारण राकेश जनता दरबार वाले दिन नेता जी से मिलने पहुँचा । उसने देखा नेता जी कुर्सी पर बैठें हैं और बहुत सारे लोग सामने जमीन पर अपनी अर्जी लेकर अपने नंबर का इंतजा़र कर रहें हैं । जब राकेश का नंबर आया तो नेता जी उससे बोले आपकी अर्जी कहाँ है । यह सुनकर उसने उन्हें अपने आने का कारण बताया । नेता जी बोले अरे भैया इस सब में क्यों पड़ते हो । हम हैं ना तुम्हारे नेता । हमे अपना काम बताओ । जनता हमारे राज में खुश है । ऎसा कोई काम है जो हम नहीं कर सकते । राकेश सोच रहा था यह जनता नहीं आपकी प्रजा है और आप नेता नहीं एक राजा हैं । आपने सच कहा आप सब कुछ कर सकतें हैं । बस कोई सच्चा राष्ट्रवादी नेता नहीं पैदा कर सकते ।

5 comments:

  1. बहुत बढिया लघुकथा
    दीपक भारतदीप

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  2. मैं इसे लघु-कथा तो नहीं कह सकता पर हाँ यह शानदार Statement जरुर है…।
    जो कहा गया है वह सराहनीय है…।

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  3. संजीव एवं दीपक जी,

    आपकी टिप्पणी के लिये हार्दिक धन्यवाद

    दिव्याम भाई,
    शायद आप सही कह रहें हैं । आपने सही पहचाना मैं इस लेख के माध्यम से अपने विचार कहने की कोशिश कर रहा था । कथा कहानी लिखना एक कला है जिसे मुझे अभी सीखना है । मैं इस पोस्ट के शीर्षक से लघु कथा हटा रहा हूँ....
    हर समय की तरह आपकी टिप्पणी का हार्दिक धन्यवाद ...

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  4. सुंदर अभिव्यक्ति है।

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आपकी टिप्पणी और उत्साह वर्धन के लिये हार्दिक आभार....