अपने चिंतन को जीते हो
कितनी तुम पीड़ा सहते हो
कितना तुम अंदर मरते हो
तब जाकर कविता गढ़ते हो
ऎसे ओज पूर्ण भावों पर
गहन वेदना में प्रसूत सी
मुख से फ़ूट पड़ी रचना पर
श्रद्धा से झुकता है यह मन
और देता तुम्हें सलामी है
कैसे दूँ तुम्हें बधाई मैं
कैसे दूँ तुम्हें बधाई मैं
Thursday, February 22, 2007
Monday, February 19, 2007
कठिन होता है....
आसान होता है कहना
पाप से नफ़रत करो पापी से नहीं
कठिन होता है पापी से नफ़रत न करना
आसान नहीं होता सुख-दुख में समान रहना
कठिन होता है दुखों में विचलित न होना
कठिन होता है शीशे का पत्थरों के बीच रहना
कठिन होता है एक घाघ इंसान के लिये
यह समझना कि दुनियाँ में
ज्यादातर लोग घाघ नहीं होते
तो फ़िर क्यों रखता है भगवान
विपरीत प्रकृति वालों को साथ-साथ
जैसे नाजुक गुलाब के साथ होते हैं काँटे
शायद जैसे काँटों की चुभन में ही
होता है फ़ूलों की नरमी का अहसास
वैसे ही अच्छाई की सही जरूरत
तो बुराई के बीच ही होती है
पाप से नफ़रत करो पापी से नहीं
कठिन होता है पापी से नफ़रत न करना
आसान नहीं होता सुख-दुख में समान रहना
कठिन होता है दुखों में विचलित न होना
कठिन होता है शीशे का पत्थरों के बीच रहना
कठिन होता है एक घाघ इंसान के लिये
यह समझना कि दुनियाँ में
ज्यादातर लोग घाघ नहीं होते
तो फ़िर क्यों रखता है भगवान
विपरीत प्रकृति वालों को साथ-साथ
जैसे नाजुक गुलाब के साथ होते हैं काँटे
शायद जैसे काँटों की चुभन में ही
होता है फ़ूलों की नरमी का अहसास
वैसे ही अच्छाई की सही जरूरत
तो बुराई के बीच ही होती है
Wednesday, February 07, 2007
मैं कोशिश करूगाँ...
मेरा स्वयं से यह वादा नहीं है
वैसे भी वादों पे कब टिक सका हूँ
मगर आज इतना ही कहना है मुझको
मैं इंसान बनने की कोशिश करूगाँ
धरा ने दिया है भोजन सभी का
गर अपने हिस्से का लेता रहूँ मैं
खाने के लिये जीना अच्छा नहीं है
मैं कम खाने की कोशिश करूगाँ
सच्चाई बयाँ करने की जिद में
वाणी से मेरी कई दिल दुखें हैं
और चैन मेंने भी पाया नहीं है
मैं अच्छा कहने की कोशिश करूगाँ
श्रद्धा में कवियों की हरदम झुका हूँ
खुश हूँ स्वयं को कवियों में पाकर
लिखना मुझे अभी आया नहीं है
मैं सच्चा लिखने की कोशिश करूगाँ
वैसे भी वादों पे कब टिक सका हूँ
मगर आज इतना ही कहना है मुझको
मैं इंसान बनने की कोशिश करूगाँ
धरा ने दिया है भोजन सभी का
गर अपने हिस्से का लेता रहूँ मैं
खाने के लिये जीना अच्छा नहीं है
मैं कम खाने की कोशिश करूगाँ
सच्चाई बयाँ करने की जिद में
वाणी से मेरी कई दिल दुखें हैं
और चैन मेंने भी पाया नहीं है
मैं अच्छा कहने की कोशिश करूगाँ
श्रद्धा में कवियों की हरदम झुका हूँ
खुश हूँ स्वयं को कवियों में पाकर
लिखना मुझे अभी आया नहीं है
मैं सच्चा लिखने की कोशिश करूगाँ
Monday, February 05, 2007
जलती है लौ विश्वास की...
आज देखो बज उठी फ़िर रणभेरी चुनाव की
लोकतंत्री यह व्यवस्था पूंजी है इस राष्ट्र की
ना टीवी ना आश्वासन ना नोट हमको चाहिये
वोट मेरा कर्मयोगी के लिये सम्मान है
मूल्य से ही आज यह उम्मीदवारी पाई है
कैसे रहे फ़िर राजनीति धर्म जीवन मूल्य की
राष्ट्र के स्वामी बने हैं आज एक याचक यहाँ
जनता बनी है आज राजा, भारत भूमि श्रेष्ठ की
पीढ़ियों के पुण्य से जलती है लौ विश्वास की
क्यों करे कोई तपस्या धर्म सेवा त्याग की
दंगा कराकर आप पहले असुरक्षा फ़ैलाईये
फ़िर सुरक्षा बेचकर सत्ता की रबड़ी खाईये
लोकतंत्री यह व्यवस्था पूंजी है इस राष्ट्र की
ना टीवी ना आश्वासन ना नोट हमको चाहिये
वोट मेरा कर्मयोगी के लिये सम्मान है
मूल्य से ही आज यह उम्मीदवारी पाई है
कैसे रहे फ़िर राजनीति धर्म जीवन मूल्य की
राष्ट्र के स्वामी बने हैं आज एक याचक यहाँ
जनता बनी है आज राजा, भारत भूमि श्रेष्ठ की
पीढ़ियों के पुण्य से जलती है लौ विश्वास की
क्यों करे कोई तपस्या धर्म सेवा त्याग की
दंगा कराकर आप पहले असुरक्षा फ़ैलाईये
फ़िर सुरक्षा बेचकर सत्ता की रबड़ी खाईये
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