आज फ़िर सवालों के समक्ष मैं मौन हूँ
सोचता हूँ कहाँ से शुरू करूँ की मैं कौन हूँ
दिल्ली की सड़कों पर चलता
निरंतर काम की तलाश करता
पहले बसने और फ़िर बसाने की चाह लिये
औसत दर्जे का एक युवा अभियंता हूँ
उच्च वर्ग को सबकुछ अपना
कमाया हुआ लगता है
निम्न वर्ग के पास देने के लिये
कुछ नहीं बचता है
मैं मध्य वर्ग का प्रतिनिधि हूँ
यहाँ जद्दोज़हद और हताशा के
बीच वैचारिक संघर्ष भी है
मैं गरीबी को जानता हूँ
और एश्वर्य को मानता हूँ
मुझमे नेतृत्व की प्रबल संभावना है
मध्य वर्ग की अभिलाषाओं और
विरोधाभासों के बीच देश छूटा
आज मैं भारत का वासी हूँ किंतु प्रवासी हूँ
जगह बदल जाने से इंसान नहीं बदलते
एक रिक्शे वाले और बेरोज़गार से
स्वयं को अलग नहीं पाता हूँ
राष्ट्र के प्रति समर्पण और प्रेम
दूरियों से कहाँ रुकता है
आज भी देश मेरे अंदर धड़कता है
Friday, January 12, 2007
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